RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'राज, मेरा विचार है कि गरम पानी की बोतल करके सेंक लूं।'
'अभी पानी गरम करे देता हूं। बोतल कहां है?'
'तुम्हें कष्ट होगा, जरा डॉली को जगा दो।' राज डॉली के कमरे की ओर गया और वहां पहुंचकर उसने धीरे-से दरवाजा खटखटाया। कोई उत्तर न मिला। उसने कुछ जोर से खटखटाया। उत्तर इस बार भी न मिला। शायद गहरी नींद में सो रही हो, यह सोचकर वह अपने कमरे में गया, टार्च उठाई और बाहर खिड़की से डॉली को आवाज दी। कोई उत्तर न पाकर उसने टार्च की रोशनी डॉली के बिस्तर पर डाली। वह स्तब्ध खड़ा रह गया। डॉली बिस्तर पर न थी। वह जा भी कहां सकती है इतनी रात गए? दरवाजा तो अंदर से बंद है। उसके रक्त की गति मानो बंद हो गई। उसने अपनी उंगली काटी, अपनी आंखों को मला, अपने हाथों को रगड़ा और जब उसे विश्वास हो गया कि वह स्वप्न नहीं देख रहा तो उसने फिर कमरे में टार्च की रोशना डाली। कमरे में कोई न था। उसने घूरकर आगे-पीछे देखा, चारों ओर घना अंधकार था! दूर बाग में उसने किसी के पैरों की आहट सुनी। वह धीरे-धीरे उसी ओर बढ़ा। उसका हृदय धड़क रहा था। कुछ दूरी पर उसको एक छाया-सी दिखाई दी। उसने टार्च की रोशनी उसी ओर डाली। उसके आश्चर्य की सीमा न रही। उसके पैरों के नीचे से मानों जमीन खिसक गई हो। वह देखता क्या है कि डॉली एक युवक के बाहुपाश में बंधी खड़ी है। रोशनी पड़ते ही डॉली संभली। वह घबरा -सी गई।
राज ने देखा वह युवक जय था। राज का अंग-प्रत्यंग क्रोध से फड़कने लगा, पर वह शांत रहा।
'कौन? दी. प. क?'
'डॉली, डैडी बुला रहे हैं।' राज यह कहकर वापस लौट पड़ा। डॉली उसके पीछे-पीछे आ रही थी। वह कांप रही थी। इस समय डैडी ने क्यों बुलाया है? क्या वह यह सब जान गए
दोनों बरामदे में पहुंच गए। राज सीढ़ियों पर रुक गया। डॉली ने समीप पहुंचते हुए धीरे-से कहा, 'कहां है डैडी?'
'अपने कमरे में।' राज का स्वर गंभीर था।
'क्यों? क्या बात है?' डॉली डरते-डरते बोली।
'उनके पेट में बहुत दर्द है। गरम पानी की बोतल मंगवाई है।'
'तुम चलो, मैं आती हूं।' डॉली यह कहकर बाहर गई और खिड़की के रास्ते से अंदर जाकर अपने तकिए के नीचे से तालियां उठाई और शीघ्रता से डैडी के पास पहुंची।
'क्यों, डैडी क्या बात है?'
"पेट में बहुत दर्द है। घोड़े बेचकर सो गई थी जो जगाने में इतनी देर लगी?'
'ऐसे ही जरा नींद आ गई थी।' उसने कनखियों से राज की ओर देखा। वह क्रोध से लाल हो रहा था। डॉली ने सामने का कमरा खोला और बोतल निकालकर राज के हाथ में दे दी। डॉली रसोई से गरम पानी का बर्तन ले आई। राज ने बोतल का कार्क खोला और बोतल आगे कर दी। डॉली ने पानी बोतल में डालना आरंभ किया। उसके हाथ कांप रहे थे। उबलता हुआ राज के हाथ पर जा पड़ा और बोतल उसके हाथ से छूटकर फर्श पर गिर गई।
'होश में हो या सो रही हो?' सेठ साहब ऊंचे स्वर में बोले।
'जी, कोई बात नहीं।' राज ने कहा और बोतल फिर से उठाकर हाथ में ले ली। डॉली ने पानी डाला और बोतल का कार्क बंद करके राज ने बोतल सेठ साहब के हवाले की। सेठ साहब ने उसे लेकर पेट पर रख लिया।
'अब तबियत कैसी है?' थोड़ी देर बाद राज ने पूछा।
'अब तो कुछ आराम है?' 'नहीं, वह तो मामूली....।'
'इधर आओ।'
राज ने अपना हाथ आगे कर दिया। चमड़ी लाल होकर उभर आई थी। उबलता पानी था, जलना तो था ही।
'डॉली, जाओ, गीला आटा इस पर लगा दो, कहीं छाले न पड़ जाएं....' डैडी बोले, 'और देखो, बत्ती बंद कर दो, शायद नींद आ जाए।'
राज ने बत्ती बंद कर दी और दोनों कमरे से बाहर निकल गए। 'कहां जा रहे हो?' डॉली ने राज से पूछा।
'अपने कमरे में।' 'ठहरो, देखती हूं शायद आटा मिल ही जाए।'
'मुझे आवश्यकता नहीं।' राज के स्वर में कठोरता थी।
"देखो तो कितना जल गया है।'
'हाथ जला है तो आटा लगा दोगी, परंतु दिल को....?' और राज ने अपना मुंह फेर लिया।
'राज, मै तुम्हारे सामने बहुत लजित हूं। बात वास्तव में....'
'मुझे किसी सफाई की आवश्यकता नहीं। रात अधिक बीत चुकी है। जाओ सो रहो।' और राज अपने कमरे की ओर बढ़ा।
'बात तो सुनो राज!'
परंतु राज सीधा अपने कमरे में चला गया और उसने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।
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