RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
चार दिन बीत गए परंतु राज डॉली के कमरे में न गया। डॉली ने भी उसे नहीं बुलाया। राज इस विचार से कि डॉली अब उससे घृणा करने लगी है, उसके सामने आने का साहस न कर सका।
आज इतवार का दिन था। राज की छुट्टी थी। डॉली भी चारपाई छोड़ चुकी थी। सेठ साहब कुछ कागज बिखेरे बैठे थे। राज अपने कमरे में अकेला बैठा था। वह बाहर आने का साहस न कर सका। वह डर रहा था कि बाहर निकलते ही यदि डॉली का सामना हो गया तो वह क्या करेगा। उसके पैर सीढ़ियों तक पहुंचे ही थे कि उसे डॉली की आवाज ने वहीं ठहरा दिया। उसने धीरे-से मुड़कर देखा। डॉली अपने कमरे के दरवाजे में खड़ी मुस्करा रही थी।
'जरा मेरी बात सुन जाओ।' और वह कमरे में अंदर चली गई।
राज दबे पांव, उसके पीछे कमरे में आ गया। वह शीशे के सामने खड़ी बाल बना रही थी। राज कमरे में आते ही ठिठककर खड़ा हो गया। शीशे में उसे डॉली का चेहरा दिखाई दे रहा था। वह अभी मुस्करा रही थी।
'आपने मुझे बुलाया?' राज ने धीरे-से पूछा।
'जी। विचार तो कुछ ऐसा ही है।' अभी तक वह शीशे की ओर ही मुख करे खड़ी थी।
'कहिए, क्या आज्ञा है?'
'यह आप-आप क्या लगा रखी है, सीधा तुम कहो ना।' डॉली ने बालों में पिन लगाते हुए कहा।
'मेरा विचार....।'
'जी आपका विचार ठीक है।' डॉली ने बात काटकर कहा और कंघा ड्रेसिंग टेबल पर छोड़कर राज की ओर देखने लगी। फिर बोली, 'क्या मुझसे नाराज हो?'
'नहीं तो डॉली, ऐसी कोई बात नहीं।'
'फिर तुम चार दिन से मेरे इतने समीप रहते हुए भी मुझसे क्यों दूर रहे?'
'वास्तव में बात यह थी कि मेरी कुछ तबियत...।'
'तबियत खराब थी! कितने मीलों से आना था पूछने तुमको... बहाना भी ऐसा बनाया? अच्छा अब यह बताओ कि जा कहां रहे हो?'
'वैसे ही जरा बाहर, एक मित्र के घर।'
'देखो, मैं दादर एक सहेली की सगाई में जा रही हूं। यदि बुरा न मानो तो रास्ते में छोड़ते जाना। मैं जल्दी से कपड़े बदल लूं।'
राज कमरे से बाहर जाने लगा।
ठहरो, तुम कहां जा रहे हो? मैं स्वयं ही बाथरूम में जा रही हूं। यह कहकर डॉली ने अपने कपड़े उठा लिए और बाथरूम की ओर चल दी। राज पास ही पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। वह मन-ही-मन प्रसन्न था। उसका पुरुषत्व विजयी हुआ था। डॉली ने ही तो उसे पहली आवाज दी थी। इसी बीच डॉली कपड़े बदल कर वापस आ गई और शीशे के सामने खड़ी होकर बाल संवारने लगी।
'राज एक काम करो।'
'कहो डॉली।'
'तनिक समीप आ जाओ।'
राज उठा और डॉली के पीछे जा खड़ा हुआ। डॉली बोली, 'जरा पीछे से मेरी कमीज के बटन बंद कर दो।'
'मेरा विचार है कि तम भविष्य में इस प्रकार के कामों के लिए एक आया का प्रबंध कर लो....।' राज ने डॉली की कमीज के बटन बंद करते हुए कहा।
'मुझे ज्ञात न था कि छोटे-छोटे काम करने से तुम्हारे हाथ थक जाते हैं।'
'नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं परंतु तुम्हारे और मेरे बीचआवश्यकता से अधिक स्वतंत्रता अच्छी नहीं और फिर तुम भी तो यह पसंद नहीं करती कि मैं....।'
'यह ठीक है कि मैंने तुम्हें उस दिन किसी बात के लिए मना कर दिया और तुम भी भली प्रकार समझते हो कि वह तुम्हारी भूल थी।'
'मेरा तो विचार है कि मैंने तुम्हें मांगकर कोई भूल नहीं की। फिर भी यदि तुम समझती हो कि यह कहकर मैंने तुम्हारा दिल दुखाया है तो मैं इसकी क्षमा चाहता हूं। इससे अधिक मैं और क्या कर सकता हूं?'
'इसमें बुरा मानने की क्या बात है? यदि मेरे हृदय में कोई संदेह होता तो मैं तुम्हें किसी भी काम के लिए क्यों कहती? मेरी दृष्टि में तुम अब भी वैसे हो जैसे कुछ दिन पहले थे।'
"डॉली, क्या तुम ठीक कह रही हो? तुम्हारे हृदय में मेरे लिए उतना ही आदर और स्नेह है जितना पहले था?'
'मुझे झूठ बोलने की आदत नहीं। चलो जल्दी चलो। देर हो रही है।' यह कहकर डॉली दरवाजे की ओर बढ़ी। राज भी उसके पीछे हो लिया। थोड़ी देर बाद दोनों सड़क पर पहुंच एक ओर चल दिए। डॉली मौन थी। राज चाहता था कि वह कुछ बात और करे तो वह उसके सब संदेह दूर कर दे। वह नहीं चाहता था कि उसके कारण डॉली अथवा उसके डैडी को किसी प्रकार का क्लेश हो, परंतु डॉली मौन रही। उसने कोई बात नहीं की। राज ने डॉली को उसकी सहेली के घर पहुंचा दिया और सिनेमा चला गया। उसे ऐसा जान पडा मानो उसके हृदय पर से एक भारी बोझ उतर गया है।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
Top
|