RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
रश्मि एकदम हड़बड़ाकर उठ बैठी।
कमरे में अंधेरा छाया हुआ था। हर तरफ सांय-सांय करती खामोशी।
पलंग पर बैठी वह आंखें फाड़-फाड़कर अपने चारों तरफ छाए अंधेरे को देखने लगी। किसी वस्तु के गिरने की तेज धमाके जैसी आवाज ने उसकी निद्रा तोड़ दी थी।
एक अजीब-सी दहशत उसे अपने मन-मस्तिष्क पर हावी होती-सी महसूस हुई—टटोलकर उसने देखा—विशेष पलंग पर सोया पड़ा था।
उसे कुछ शान्ति-सी महसूस हुई।
निद्रा टूट जाने की वजह की तलाश में भटक रहे मन-मस्तिष्क को एकाएक ही यह अहसास हुआ कि कमरे में कोई अजनबी है—इस विचार मात्र से रश्मि रोमांचित हो उठी।
कमरे में किसी तीसरे व्यक्ति के सांस लेने की आवाज गूंज रही थी।
रश्मि के मस्तक पर पसीना उभर आया। जिस्म के रोएं खड़े हो गए—उसे यह यकीन होता चला गया कि कमरे में कोई है। डर ने पूरी मजबूती के साथ उसके दिलो-दिमाग को कस लिया। सच बात तो यह है कि आतंक की अधिकता के कारण उसकी हिम्मत पलंग से स्विच तक जाने की न पड़ रही थी।
साहस करके वह फर्श पर खड़ी हो गई। फिर कमरे में छाए अंधेरे को घूरती हुई स्विच की तरफ बढ़ी और अभी मुश्किल से दो या तीन कदम ही चली थी कि दृष्टि कमरे के पीछे की तरफ खुलने वाली खिड़की पर पड़ी।
अनायास ही रश्मि के कण्ठ से एक चीख उबल पड़ी।
बड़ी ही डरावनी और हृदयविदारक इस चीख ने सन्नाटे को झंझोड़कर रख दिया—अगले ही पल अंधेरे में विशेष की आवाज गूंजी— "क...क्या हुआ मम्मी , तुम कहां हो ?"
मगर रश्मि को तो मानो होश ही न था।
विशेष की आवाज जैसे उसने सुनी ही न थी। अपने स्थान पर जड़वत्त्-सी खड़ी वह पथराई-सी आंखों से खिड़की की तरफ देख रही थी। वहां एक भयानक शक्ल नजर आ रही थी।
उसी चेहरे को देखकर रश्मि के कण्ठ से चीख निकली थी।
चेहरा बुरी तरह जला हुआ था। वह अपनी खूंखार आंखों से कमरे में ही देख रहा था। बुरी तरह डरे हुए अन्दाज में रश्मि चीख पड़ी—क....कौन है ?"
आतंकित रश्मि पागलों की तरह स्विच की तरफ भागी और अगले ही पल उसने स्विच ऑन कर दिया—कमरा प्रकाश से भर गया।
खिड़की के उस पार से जला हुआ चेहरा गायब।
हक्का-बक्का-सा विशेष पलंग पर बैठा नजर आया।
रश्मि दौड़कर उसकी तरफ भागी , परन्तु पलंग पर पहुंचते-पहुंचते उसने खिड़की के शीशे का कटा हुआ भाग देख लिया था—शीशा काटने वाले हीरे से काटा गया चार इंच का वर्गाकार भाग—बड़ी तेजी से रश्मि के जेहन में यह विचार कौंधा कि अगर मेरी नींद न खुल जाती तो वह डरावने चेहरे वाला अन्दर से बन्द खिड़की की चिटकनी खोल लेता।
"क...क्या बात है मम्मी , यहां कौन है ?" विशेष की आवाज कांप रही थी।
"प...पता नहीं बेटे! " कहती हुई रश्मि ने विशेष को बांहों में भर लिया और उसी क्षण नजरें कमरे के फर्श पर बिखरे कांच पर पड़ीं—वह खिड़की के कटे टुकड़े का कांच था।
रश्मि समझ गई कि इस टुकड़े के टूटने की खनक से ही उसकी नींद टूटी थी—वह बुरी तरह डर गई थी , बोला— “ चलो....वीशू।"
"क...कहां मम्मी?"
"न...नीचे , मांजी के पास। ” कहने के साथ ही विशेष की कलाई पकड़कर वह दरवाजे की तरफ बढ़ी।
कांपते हाथों से ही उसने दरवाजे की चिटकनी खोली और दरवाजा खोलते ही उसके हलक से पुन: चीख उबली।
इस बार नन्हां विशेष भी बुरी तरह चीख पड़ा था।
विशेष को संभाले रश्मि पीछे हट गई।
भयानक , डरावने , जले हुए और वीभत्स चेहरे का मालिक दरवाजे के बीचो-बीच खड़ा अपनी खूंखार और रक्तिम आंखों से उन्हें घूर रहा था। रश्मि अपने आतंक पर अभी काबू भी नहीं कर पाई थी कि एक लम्बे कदम के साथ यह कमरे में आ गया।
दहशत के कारण विशेष ने अपना चेहरा रश्मि के अंक में छुपा लिया था।
जिस वक्त डरावने चेहरे वाला दरवाजा बन्द करने के बाद अन्दर से चिटकनी चढ़ा रहा था , तब रश्मि चीख पड़ी— क......कौन हो
तुम....क....क्या चाहते हो ?"
चिटकनी बन्द करने के बाद वह घूमता हुआ बोला— “ म.....मेरा नाम रूपेश है।"
"रूपेश ?"
"वही, जिसे उसने जीवित जलाने की कोशिश की थी—देख रही हो यह जला चेहरा—उसी हरामजादे की करतूत है ये—वह तुम्हारा पति बन बैठा है—हुंह—एक विधवा का पति।”
"व...वह मेरा पति नहीं है।" भयभीत रश्मि कह उठी।
"देख रहा हूं।" रूपेश के कण्ठ से गुर्राहट-सी निकली—"तुमने सफेद धोती पहन रखी है—मस्तक पर बिंदी है , न मांग में सिंदूर—न पैरों में बिछुए हैं , न कलाइयों में चूड़ियां—फिर भी पुलिस उसे तुम्हारा पति कहती है और तुम्हारी इस वेशभूषा को देखकर ही मैंने उसे विधवा का पति कहा है।"
"त...तुम यहां क्यों आए हो ?"
रूपेश दांत भींचकर गुर्राया— “ हरामजादे की बोटी-बोटी नोच डालने के लिए।"
"म...मगर" विशेष को लिए पीछे हटती हुई वह बोली— “इस वक्त वह यहां नहीं है।"
"मैं जानता हूं।"
“फ.....फिर तुम यहां? मेरे कमरे में क्यों आए हो ?"
"सुना है कि इस लड़के से वह बहुत प्यार करता है।"
"न...नहीँ।" विशेष को अपने से लिपटाए वह हलक फाड़कर चिल्ला उठी—जबकि उसकी तरफ बढ़ता हुआ रूपेश बड़ी ही खतरनाक मुस्कराहट के साथ कहता चला गया—“मैं इसे यहां से ले जाऊंगा , और फिर जहां मैं उस कुत्ते को बुलाऊंगा , वहां घुटनों के बल रेंगते हुए उसे आना होगा।"
"त...तुम्हें गलतफहमी है। वास्तव में वह वीशू से बिल्कुल प्यार नहीं करता है—इसे प्यार करने का नाटक करके उसने सिर्फ इसे अपने मोहजाल में फंसाया था—केवल इस घर की चारदीवारी में शरण लेने के लिए—वह हत्यारा है , पुलिस से बचने मात्र के लिए वह सर्वेश बना है।"
तभी कमरे के बन्द दरवाजे को किसी ने जोर से खटखटाया।
रूपेश ने बुरी तरह चौंककर पीछे देखा , दरवाजा खटखटाने के साथ ही बूढ़ी मां की आवाज भी सुनाई दी—रश्मि और विशेष की चीखों ने शायद उसे जगा दिया था।
उचित अवसर जानकर रश्मि दरवाजे की तरफ लपकी।
रूपेश ने बिजली की-सी फुर्ती के साथ जेब से रिवॉल्वर निकालकर दस्ते का वार रश्मि की कनपटी पर किया—वार इतना 'सैट ' था कि एक चीख के साथ रश्मि वहीं ढेर हो गई।
"म...मम्मी …मम्मी …।" चिल्लाता हुआ विशेष उसे झंझोड़ने लगा।
हड़बड़ाए-से रूपेश ने एक वार उसकी कनपटी पर भी किया—एक चीख के साथ विशेष भी बेहोश हो गया , दरवाजा पीटने के साथ ही बूढ़ी मां ज्यादा जोर से चिल्लाने लगी थी—बौखलाए हुए रूपेश ने रिवॉल्वर जेब में रखा।
एक कागज निकालकर कमरे के फर्श पर फेंकने के बाद विशेष के बेहोश जिस्म को उठाकर उसने कन्धे पर लादा और खिड़की की तरफ दौड़ा।
अगले कुछ ही पलों बाद वह खिड़की के समीप से गुजर रहे 'रेन वाटर पाइप ' के सहारे तेजी के साथ उतरता चला जा रहा था।
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