RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"कुछ दिन तक ठीक चला , मगर शीघ्र ही माला की समझ में यह बात आ गई कि उनके प्यार के मुकाबले पर तराजू के दूसरे पलड़े में अगर एक सौ का नोट भी रख दिया जाए तो प्यार वाला पलड़ा हवा में डगर-डगर नाचेगा।
"कहना चाहिए कि फांकों की झाडू ने माला के सिर से प्रेम-भूत उतार दिया और तब उसने जाना कि वह खुद दौलत के मामले में रूपेश से कहीं प्यादा महत्वाकांक्षी है—अब ये पति-पत्नी किसी ऐसी तिकड़म के जुगाड़ में लग गए , जिससे एक ही दांव में मालामाल हो जाएं। रूपेश के जेहन में बस्ती में रहने वाला करोड़पति सेठ खटक ही रहा था।
"ऐसे समय में इन लोगों ने इंस्पेक्टर दीवान द्वारा अखबारों में दिया गया विज्ञापन देखा और उसे देखते ही रूपेश के दिमाग में एक साफ-सुथरी स्कीम चकरा गई—फोटोग्राफर होने के नाते रूपेश यह समझ गया कि याददाश्त गंवाए व्यक्ति के दिमाग की प्लेट ताजा फोटो रील के समान है , जिस पर चाहे जो फोटो उतारा जा सकता है , अतः उसने उसे बस्ती के करोडपति सेठ का बचपन में भागा हुआ लड़का साबित करने की ठान ली—पति-पत्नी में मंत्रणा हुई , इस बात पर गौर किया गया कि उनकी स्कीम कितनी मजबूत रहेगी—इसी विचार-विमर्श में इन्हें देर हो गई और रूपेश से पहले मेडिकल इंस्टीट्यूट में सेठ न्यादर अली न केवल पहुंच गया , बल्कि युवक को अपने साथ भी ले गया—यह बात रूपेश को डॉक्टर भारद्वाज से पता लगी और इस प्रथम चरण में ही उनकी योजना पर पानी फिर गया।
"जब गाजियाबाद लौटकर रूपेश ने यह सब माला को बताया तो माला के वे सारे सपने चूर-चूर हो गए , जो उसने बनी हुई स्कीम की सफलता पर देखे थे …उसने रूपेश को ताने दिए कि वह सिर्फ बातें मिला सकता है , कर कुछ नहीं सकता।
"फिर रूपेश ने सेठ न्यादर अली द्वारा अखबारों में दिया गया विज्ञापन देखा—अब , अपनी उसी स्कीम को कार्यान्वित करने का उनके सामने एक और मौका था।
"इस बार रूपेश चूका नहीं।
“उसने न्यादर अली के यहां सर्विस कर ली—पहले ही दिन उसने जान लिया कि युवक को अपने सिकन्दर होने का पूरा यकीन नहीं है और वह स्वयं अपने अतीत को तलाश करना चाहता है। युवक की यह मानसिकता रूपेश के लिए लाभदायक ही थी —युवक कपड़े बदल चुका था , यानि वे कपड़े यह उतार चुका था जो एक्सीडेंट के समय उसके तन पर पाए गए थे। उन कपड़ों को साथ लिए रूपेश समय निकालकर गाजियाबाद आया। स्कीम के मुताबिक उन्हीं कपड़ों के नाप के न केवल ढेर सारे कपड़े सिलवाए गए , बल्कि इन कपड़ों पर भी ‘बॉनटेक्स’ की चिट लगवाई गई—उसी दिन रूपेश ने अपने खाते से रुपए निकाले और माला को सब कुछ समझाने के बाद देहली लौट आया , क्योंकि सर्विस की शर्तों के मुताबिक वह ज्यादा देर तक न्यादर अली की कोठी से बाहर नहीं रह सकता था।
"उधर योजना के अनुसार माला ने रूबी के नाम से दस हजार राजाराम को दिए। सौ-सौ रुपए उन्हें, जिन्होंने युवक को दुआ-सलाम की थी—वे पैसे केवल सलाम करने के ही थे—उस युवक को पांच-सौ रुपए दिए गए , जिसने सिकन्दर से 'जमने' के लिए कहा था , भगवतपुरे वाला मकान किराए पर लिया गया—इतना सब काम निपटने के बाद माला रात के वक्त देहली जाकर रूपेश से मिली—स्कीम के मुताबिक यह ट्रिक फोटोग्राफी से ऐसी एलबम तैयार कर चुका था , जिससे सिकन्दर और माला पति-पत्नी नजर आएं—वह एलबम देते वक्त रूपेश ने उसे बाकी बातें भी समझा दीं।
“माला भगवतपुरे वाले मकान में लौट आई।
"उसी रात रूपेश ने बातों में फंसाकर सिकन्दर की नॉलिज में यह बात ला दी कि उसके तन से मिले कपड़ों पर गाजियाबाद के बॉंनटेक्स टेलर की चिट है और वहीं से उसका सही अतीत पता लग सकता है। "
"बेचारा सिकन्दर रूपेश को सचमुच अपना दोस्त और शुभचिन्तक समझ बैठा। रूपेश की जानकारी में वह उसी रात न्यादर अली की कोठी से भाग निकला—रूपेश को वह समझा चुका था कि दिन में 'बॉंनटेक्स ' टेलर से मालूम कर ले कि यह कहां गया है—वह क्या जानता था कि सब कुछ रूपेश का ही किया-धरा है।
"सोच-समझकर फैलाए गए जाल में से गुजरता सिकन्दर भगवतपुरे के मकान में पहुंच गया। उसे सुनाने के लिए जो कहानी तैयार की गई थी , उसमें उन सभी सवालों के जवाब थे , जो सिकन्दर के जेहन में चकरा रहे थे—रूबी बनी माला ने अपनी और रूपेश की प्रेम कहानी ज्यों-की-त्यों सिकन्दर को सुना दी—उनके जेहन में यह भर दिया कि वह बस्ती में रहने वाले सेठ का भागा हुआ लड़का है—उसे यह बताया कि वह अपराधी प्रवृत्ति का है , ताकि अपने बारे में और ज्यादा खोजबीन करने का साहस न कर सके।"
आंग्रे की आंखों में हैरत के साए लहरा उठे , बोला—"बड़ी खतरनाक और साफ-सुथरी स्कीम थी इनकी—बस्ती में रहने वाले सेठ के समक्ष ये सिकन्दर को उसका बेटा सिद्ध कर देते और माला को उसकी पत्नी—फिर समय आने पर सिकन्दर को रास्ते से हटा दिया जाता और सेठ की सारी दौलत की एकमात्र अधिकारिणी रूबी या माला। "
"मगर—सिकन्दर के जुनून ने सारे हालात उलट दिए—अपनी स्कीम के जोश में वे 'जुनून ' के बारे में भूल गए थे—इसी जुनून ने न केवल इनकी सारी स्कीम खाक में मिला दी , बल्कि माला चल बसी , रूपेश भी एक प्रकार से चल ही बसा—अंजाम वही हुआ आंग्रे प्यारे , जो अक्सर ऐसे खतरनाक ‘प्लानर्स ' का होता है। "
"क्या मरने से पहले माला सिकन्दर को यकीन दिला चुकी थी कि....?"
"इस बारे में कौन जानता है!"
"ल...लेकिन …रूपेश माला को उसकी पत्नी साबित कर रहा था , जबकि असल में वह रूपेश की पत्नी थी , इस स्कीम के आगे बढ़ने पर क्या माला की पवित्रता कायम रह पाती ?”
"किस किस्म की पवित्रता की बात कर रहे हो, प्यारे?”
"तुम समझ रहे हो।"
"हुंह।" व्यंग्यपूर्वक मुस्कराते हुए चटर्जी ने कहा—"अपराध करने वाले यदि इस किस्म की पवित्रता-अपवित्रता का ख्याल करने लगे तो अपराध ही न हों—दौलत हासिल करने की ललक इन बातों को नगण्य कर देती है, आंग्रे भाई—जिस बात की चिंता तुम कर रहे हो , उसकी चिंता न रूपेश को थी, न माला को।"
आंग्रे चुप रह गया , इस बारे में पूछने के लिए अब जैसे उसके दिमाग में कोई सवाल नहीं रहा था , बोला—“मान गए चटर्जी—नोटों की गड्डी को क्लू बनाकर तुमने इस मामले की अंतिम गुत्थी भी सुलझा दी।"
"यह केस तुम्हारा है , फिर मैंने इतनी भाग-दौड़ क्यों की ?"
"दोस्ती के नाते।"
"बिल्कुल नहीं।"
"फिर?”
"उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाने की बीमारी है मुझे , गुत्थी मेरे सामने आई और फिर मैं खुद को रोक नहीं सका।"
मुस्कराते हुए आंग्रे ने कहा— "चलो यूं ही सही , मगर सारा मामला सुलझने के बाद भी अपराधी अभी तक गायब है , उस तक पहुंचने का भी तो कोई रास्ता निकालो।"
"लगता है कि वह किसी बिल में छुपकर बैठ गया है प्यारे मगर कब तक छुपा रहेगा? जब चटर्जी हरकत में आएगा तो उस बिल को भी खोज निकालेगा—कम-से-कम आज मैं हरकत में आने वाला नहीं हूं प्यारे , बहुत थक गया हूं—आराम करूंगा।"
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