RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
अलबत्ता जिसके हाथ में भाला था, वो अभी भी बहुत चौंकन्ना था और भाले को कमाण्डर की तरफ ही ताने था । उसके खड़े होने का अंदाज ऐसा था कि अगर कमाण्डर जरा भी हरकत दिखाता, तो वो वहीं से भाले को उसके ऊपर खींच मारता ।
वह दोनों बहुत खुसर-पुसर वाले अंदाज में बात करने लगे ।
परंतु वो बार-बार उसकी तरफ जरूर देखते थे ।
जाहिर था कि वह उसी के बारे में बात कर रहे थे । फिर वह वापस कमाण्डर करण सक्सेना के पास आ खड़े हुए ।
“ठीक है ।” नगाड़े पर थाप देने वाला बर्मी युवक बोला- “हम तुम्हारी बात पर यकीन करते हैं, लेकिन अब तुम हमसे क्या चाहते हो ?”
“मैं काफी थका हुआ हूँ ।” कमाण्डर ने खामखाह का बहाना बनाया- “इसलिए मेरी इच्छा है कि तुम लोग मुझे थोड़ी देर के लिए अपनी झोंपड़ी में आराम करने का मौका दो, जिससे मेरे घुटने का दर्द भी कुछ कम हो जाये और मेरी थकान भी उतरे ।”
“उसके बाद तुम क्या करोगे ?”
“उसके बाद मैं कोई ऐसा जरिया तलाश करूंगा, जो रंगून (बर्मा की राजधानी) तक पहुँच सकूं । अगर किसी तरह मैं रंगून पहुँच गया, तो फिर वहाँ से वापस हिन्दुस्तान पहुँचना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी ।”
वह दोनों बर्मी युवक मुस्कराये ।
उनकी मुस्कान बड़ी रहस्यमयी थी ।
“और अगर मान लो, हम तुम्हें अपनी झोंपड़ी में शरण देने के साथ-साथ कुछ ऐसा इंतजाम भी कर दें, जो तुम इस खौफनाक जंगल में से निकलकर रंगून पहुँच जाओ, तो कैसा रहे ?”
“इससे अच्छी बात भला और क्या हो सकती है ।” कमाण्डर ने खुश होकर कहा ।
“लेकिन मेरे प्यारे दोस्त, यह काम ऐसे ही नहीं हो जायेगा । इसके लिए तुम्हें ढेर सारी मुद्रा खर्च करनी होगी ।”
“मुद्रा की तुम बिल्कुल परवाह मत करो । तुम जितनी मुद्रा चाहोगे, मैं दूंगा, मेरा सिर्फ काम होना चाहिये । वैसे भी यह इत्तेफाक की बात है कि मेरे पास कुछ बर्मी टके (बर्मा की मुद्रा) हैं ।”
“फिर तो तुम अपना काम बस हो गया समझो ।” भाले वाला युवक बोला ।
“लेकिन अभी तक मुद्रा के दर्शन तो कहीं नहीं हुए ।” वह शब्द दूसरे बर्मी युवक ने कहे ।
“मुद्रा के दर्शन भी अभी होते हैं ।”
कमाण्डर ने फौरन अपने हैवरसेक बैग के अंदर हाथ डाला ।
फिर जब उसका हाथ बाहर निकला, तो उसमें पांच हजार टके की एक करारी नोटों की गडडी थी ।
उस नोटों की गड्डी को देखते ही उन दोनों बर्मी युवकों की आँखों में तेज चमक आ गयी ।
“मैं समझता हूँ ।” कमाण्डर अपना ओवरकोट दुरूस्त करता हुआ बोला-“इस काम के लिए यह पाँच हजार टके काफी हैं ।”
“बहुत हैं ।”
कमाण्डर ने वह गड्डी उस भाले वाले नौजवान की तरफ उछाल दी, जिसे उसने फौरन चील की तरह झपट लिया ।
फिर वह नोटों की गड्डी कब उसकी जेब में पहुँचकर गुम हुई, पता न चला ।
“अब तुम मुझे रंगून पहुँचाने का इंतजाम कैसे करोगे ?” कमाण्डर करण सक्सेना ने पूछा ।
“बस तुम देखते जाओ, मैं क्या करता हूँ ।” वह बर्मी युवक बोला और फिर उसने अपना भाला एक तरफ ले जाकर रख दिया ।
“यहीं नजदीक में एक गांव हैं, मैं फौरन वहाँ जा रहा हूँ ।”
“गांव में जाकर क्या होगा ?”
“दरअसल गांव में कुछ पेशेवर मल्लाह हैं, जो नाव चलाकर अपना जीवन यापन करते हैं ।” उस बर्मी ने बताया- “उनमें से किसी एक मल्लाह को यहाँ ले आऊंगा और बस वही मल्लाह तुम्हें रंगून पहुँचा देगा ।”
कमाण्डर की आँखों में विस्मय के चिन्ह उजागर हुए ।
“एक मल्लाह मुझे रंगून कैसे पहुँचायेगा ?”
“बहुत आसान है । वो मल्लाह तुम्हें अपनी नाव में बिठाकर इरावती नदी पार करा देगा । तुम्हें शायद मालूम नहीं है कि इरावती नदी का जो दूसरा छोर है, वह जंगल बस वहीं तक फैला है । उससे आगे एक कस्बा है । इरावती नदी पार करते ही तुम उस कस्बे में पहुँच जाओगे । फिर वही मल्लाह तुम्हें उस कस्बे में ले जाकर किसी ऐसी बस में बिठा देगा, जो सीधे रंगून जाती हो । बड़ी हद शाम तक तुम रंगून में होओगे ।”
कमाण्डर प्रभावित नजरों से अब उस बर्मी युवक को देखने लगा ।
“वह शक्ल-सूरत से पूरी तरह जंगली और जाहिल नजर आता था, मगर नोटों की गड्डी जेब में पहुँचते ही उसका दिमाग इस तरह चलना शुरू हुआ था, जैसे किसी ने उसके दिमाग में चाबी भर दी हो ।”
न जाने क्यों कमाण्डर को अब उन दोनों बर्मी युवकों पर कुछ संदेह होने लगा ।
परन्तु वो चुप रहा ।
“तुम्हें इस तरह रंगून पहुँचने में कोई परेशानी तो नहीं है ?” बर्मी युवक ने कमाण्डर की तरफ देखा ।
“मुझे भला क्या परेशानी हो सकती है ? किसी भी तरह से पहुंचू, मुझे तो बस रंगून पहुँचने से मतलब है ।”
“ठीक बात है । तो फिर मैं पास के गांव में जा रहा हूँ , तब तक तुम आराम करो ।”
“ओके ।”
वह युवक लम्बे-लम्बे डग रखता हुआ वहाँ से चला गया ।
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