RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 12
निक्की के जाने के बाद रवि ने दरवाज़ा बंद किया और बिस्तर में घुस गया. फिर अपनी आँखें बंद करके सोने का प्रयास करने लगा. आँखें बंद होते ही आँखों के सामने निक्की का शोले बरसाता शरीर नाच उठा. उसके शरीर के अंगो से निकलती यौवन चिंगारियों की तपिश उसे फिर से झुलसाने लगी. उसके धमनियों में बहता लहू फिर से गरम होने लगा. रवि ने बेशक निक्की का परस्ताव ठुकरा दिया था पर वो उसकी सुंदरता के सम्मोहन से नही बच पाया था. वो मजबूत इरादो वाला व्यक्ति था. पर ये भी सच था कि आज उसने जो कुच्छ देखा था वो उसके लिए बिल्कुल नया था. रवि ने अपने पूरे जीवन में कामवासना में जलती ऐसी लड़की नही देखी थी. क्या वास्तव में आज की लड़कियाँ ऐसी ही होती है. जो माता पिता की परवाह किए बिना किसी के भी सामने अपने कपड़े उतारने में उतावली रहती हैं. वैसे तो रवि मनोचिकित्सक था पर लड़कियों के प्रति उसका ज्ञान कोरा था.
वजह थी उसका शर्मीला स्वाभाव....और मा की कड़ी नशिहत! उसकी मा की इच्छा थी कि वो डॉक्टर बने, वो एक साधारण परिवार का होने के बावज़ूद भी उसकी मा ने उसकी पढ़ाई में कोई कमी नही होने दी थी. उसके पिता....जब वो 5 साल का था तभी काम के सिलसिले में बेवतन हुए थे जो अभी तक लौटकर घर नही आए थे. ईश्वर जाने उसके पिता अब ज़िंदा भी हैं या नही. उसकी मा ने खुद लाख दुख उठाकर उसे किसी चीज़ की कमी नही होने दी थी. उसने भी बचपन से ही यह तय कर लिया था कि वो अपनी मा का सपना पूरा करेगा. यही वजह थी कि जब कभी उसके पास से कोई लड़की गुजरती तो वह अपनी आँखें फेर लेता था, कॉलेज की सेक्सी और दिलफेंक लड़कियों को देखकर अपनी निगाहें नीचे कर लेता था. किशोरवस्था तक पहुँचते पहुँचते वह इतना दब्बु स्वाभाव का हो गया था कि अगर कोई लड़की उसे पुकार लेती तो उसके पसीने छूट पड़ते थे. हाथ पावं ऐसे फूल जाते थे जैसे उसे किसी योद्धा ने युद्ध के लिए ललकारा हो. उसके इस स्वाभाव के कारण उसके दोस्त उसे बहुत चिढ़ाते थे, अपने प्रेम के रस भरे किस्से सुना सुना कर उसे छेड़ते थे. रवि जब अपने दोस्तों के मूह से उनके प्रेम के किस्से सुनता तो उसका मॅन भी किसी हसीन लड़की को अपना बना लेने का करता, तब उसका मॅन भी मचल कर उससे कहता कि तू भी कोई गर्लफ्रेंड बना ले. उस स्थिति में उसकी मा की बाते उसके पावं की बेड़िया बन जाती. वह अपने सीने में उठते अरमानो को अपनी मा के दुखों का ख्याल करके उनपर अंकुश लगा देता. वो किताबी कीड़ा था अपनी तन्हाई को किताबों से दूर करता वही उसकी महबूबा थी. उसने प्यार मोहब्बत के किस्से बहुत पढ़े थे, सेक्स और वासना के किस्से भी दोस्तों से सुन रखे थे. पर निक्की जैसी लड़की के बारे में ना तो उसने कहीं पढ़ा था और ना ही किसी दोस्त ने उसे बताया था. वो अलग थी.....सबसे अलग !
रवि अपने जीवन में कभी भी विचलित नही हुआ था, उसका दिमाग़ बहुत मजबूत था, पर आज निक्की ने उसे विचलित कर दिया था. अब उसके दिमाग़ में एक ही प्रश्न घूम रहा था. -"अब उसे क्या करना चाहिए? निक्की जैसी लड़की शांति से बैठने वाली लड़की नही है, वो फिर प्रयास करेगी, या फिर अपने अपमान का बदला उसे अपमानित करके लेगी. ऐसी स्थिति में उसके बचाव के दो ही विकल्प रह गये थे, या तो वो सारा सच ठाकुर को बता दे ये फिर वो चुप चाप यहाँ से काम छोड़ कर चला जाए. पहला विकल्प उसे घृणित जान पड़ा, निक्की की असलियत बताकर वो ठाकुर साहब को जीतेज़ी मारना नही चाहता था, वैसे भी राधा देवी के गम में वे आधे मर चुके थे, अब निक्की की करतूतों को जानकार तो उस भले इंसान का दम ही निकल जाएगा. अब दूसरा विकल्प था हवेली छोड़ कर जाने का. लेकिन यहाँ से जाने का अर्थ था अपनी डॉक्टरी पेशे का अपमान करना, उसने ठाकुर साहब को वचन दिया था कि वो उनकी पत्नी राधा को ठीक किए बिना यहाँ से नही जाएगा. ठाकुर साहब पिच्छले 20 वर्षो से इसी आस में जी रहे थे कि कोई डॉक्टर उनकी पत्नी को ठीक कर दे, कितने डॉक्टर्स आए और पैसे खाकर चले गये, वो अपनी गिनती उन डॉक्टर्स में नही करना चाहता था. ठाकुर साहब रवि पर बहुत आस लगाए बैठे थे. अब जो भी हो वो यहीं रहेगा, सिर्फ़ एक लड़की उसकी ज़िंदगी का फ़ैसला नही कर सकती, वो भी एक चरित्रहीन लड़की. हरगिज़ नही!वो हवेली छोड़ कर नही जाएगा, रही बात निक्की की तो चाहें वो अपने हुश्न की लाखो बिजलियाँ गिरा ले, चाहें वो निर्वस्त्र ही उसके सामने क्यों ना बिच्छ जाए, वो नही हिलेगा. उसने अपने इरादों को मजबूत किया और चादर तानकर सोने का असफल प्रयत्न करने लगा.
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अगली सुबह रवि अपने नियमित टाइम पर सोकर उठा, वो नहाने के बाद लगभग 10 बजे राधा देवी के कमरे में जूस और दवाइयाँ लेकर गया. ये उसका रोज़ का काम था, उसे दिन में दो बार राधा देवी को दवाइयाँ और जूस देना रहता था, एक 10 बजे सुबह और दूसरी दफ़ा रात को 9 बजे. इस वक़्त निक्की भी उसके साथ होती थी. आज भी रवि और निक्की राधा देवी के कमरे में गये, पर दोनो इस बार एक दूसरे से दूर दूर ही रहे, हां राधा देवी के सामने रवि निक्की को अपने पास आने से नही रोक सका. वहाँ वह जब तक रहा निक्की उसके साथ चिपकी रही. राधा देवी के कमरे में निक्की कभी अपना सर रवि के कंधे पर रख देती तो कभी अपने बूब्स रवि की बाहों से रगड़ने लगती, तो कभी हस्ते हुए उसकी आँखों में ऐसी भूखी नज़रों से देखती कि रवि की रोंगटे खड़े हो जाते. किसी तरह से वह काम निपटा और रवि अपने कमरे में आया. उसका दिमाग़ भन्ना गया था. दिन भर अपने रूम में पड़ा पड़ा निक्की के बारे में ही सोचता रहा. पर वो जितना निक्की के बारे में सोचता उसका दिमाग़ और खराब होने लगता. लगभग 3 बजे वो हवेली से बाहर निकला. उस वक़्त धूप बहुत तेज़ थी, लेकिन रवि हवेली से बाहर रहकर निक्की के ख्यालों से पिछा छुड़ाना चाहता था. उसने अपनी बाइक संभाली और पहाड़ियों की ओर निकल गया. घाटियों में पहुँचकर उसने अपनी बाइक रोकी और पैदल ही झरने की तरफ बढ़ गया. कुच्छ ही मिनिट में वो एक विशाल झरने के निकट खड़ा था. वो खड़े खड़े झील में गिरते झरने को देखने लगा. उसने सोचा यहाँ इतना अधिक शोर होकर भी कितनी शांति है. और हवेली में कोई शोर ना होकर भी मॅन को शांति नही. वो थोडा और आगे बढ़ा, उसका इरादा झील में गिरते पानी को देखने का था. क्योंकि वो जिस जगह खड़ा था वहाँ से झील की सतह नही दिख रही थी. उसने अपने कदम बढ़ाए. अभी वो दो कदम ही चला था कि उसके दाहिने और उसे किसी के होने का एहसाह हुआ. उसने अपनी गर्दन घुमाई तो उसे एक लड़की पत्थर पर बैठी दिखाई दी. लड़की का आधा शरीर पत्थरों की ओट में छिपा हुआ था. लड़की का सिर्फ़ बायां कंधा ही बाहर था. लेकिन तेज़ हवाओं के झोके से उसके लंबे बाल बार-बार उड़कर वहाँ पर किसी लड़की के होने का प्रमाण दे रहे थे. रवि उस लड़की को देखने की चाह लिए थोड़ा और आगे बढ़ा. अब वो उस लड़की से सिर्फ़ दस कदम पिछे खड़ा था. वहाँ से वो उसे सॉफ सॉफ देख सकता था. ना केवल देख सकता था बल्कि अब तो रवि ने उसे पहचान भी लिया था. ये कंचन थी. वो आज भी उसी लिबास में थी जिसे रवि ने उसे सबक सिखाने के लिए, उसके भाई की मदद से चुरा लिए थे. वो कुच्छ देर उसे देखता रहा, उसे अंदेशा था कि वो उसे पलटकर देखेगी, लेकिन नही, वो किसी गहरी सोच में लग रही थी उसकी आँखें गिरते झरने पर टिकी हुई थी. सहसा रवि का माथा ठनका. कहीं ऐसा तो नही ये लड़की आत्महत्या करने आई हो. जिस तरह शहरों में बस और ट्रेन के नीचे लेटकर जान देने का रिवाज़ है, उसी तरह गाओं में पहाड़ों से छलाँग मारकर और कुएँ में कूद कर जान देने का चलन भी है. अगले ही पल उसके दिमाग़ में सवाल उभरा -"लेकिन ये मरना क्यों चाहती है? इस उमर में ऐसा क्या हो गया कि ये जान देने को तैयार हो गयी. कहीं ऐसा तो नही कि मैने कल जो इसको बुरा भला कहा था उसी से दुखी होकर अपनी जान दे रही हो? होने को कुच्छ भी हो सकता है? ये गाओं के लोग बड़े ज़ज़्बाती होते हैं. इससे पहले कि वो लड़की गहरी झील में समा जाए उसने पुकारा -"आए लड़की, तू मरना क्यों चाहती है?"
रवि की आवाज़ जैसे ही उसके कानो से टकराई, वो चौंकते हुए पलटी. उसके चेहरे पर गहरे दुख की परत चढ़ि हुई थी, आँखे इस क़दर लाल थी मानो वो रात भर सोई ही ना हो. रवि आश्चर्य से उसके चेहरे को देखता रहा.
"आप.....!" कंचन आश्चर्य से रवि को देखती हुई बोली, फिर धीरे से मुस्कुराइ, उसकी मुस्कुराहट भी दम तोड़ते इंसान की तरह थी. जिनमे पीड़ा के अतिरिक्त और कुच्छ भी ना था. वो आगे बोली - "मैं क्यों मरूँगी? और आप क्यों चाहते हैं कि मैं मरूं? क्या आप मुझसे इतनी घृणा करते हैं कि मुझे जीवित देखना भी पसंद नही करते?"
कंचना की बातें व्यंग से भरी हुई थी. रवि तिलमिला गया. उसे तत्काल कोई उत्तर देते ना बना. वह हकलाते हुए बोला - "मेरा ये मतलब नही था, तुम झरने के इतनी निकट खड़ी थी कि मुझे ऐसा भ्रम हुआ कि तुम अपनी जान देना चाहती हो. आइ'म सॉरी." रवि झेन्प्ते हुए बोला.
"मैं इतनी कमजोर लड़की नही हूँ साहेब की किसी के तिरसकार से दुखी होकर अपनी जान दे दूं. मुझे अपनी ज़िंदगी से प्यार है." कंचन दुखी मन से बोली और वहाँ से जान लगी.
रवि को कंचन की बातों में एक दर्द का एहसास हुआ, उसे ऐसा लगा जैसे वो अंदर ही अंदर सिसक रही हो. वैसे तो रवि निर्दोष था, पर जाने क्यों उसे ऐसा लगा कि कंचन के दुखों का वही ज़िम्मेदार है. उसे कंचन की बाते अपने दिल में चुभती सी लगी. वो कुच्छ देर खामोशी से उसे जाते हुए देखता रहा फिर पीछे से आवाज़ दिया - "सुनो..."
कंचन उसकी आवाज़ से रुकी, फिर धीरे से पलटी. रवि धीरे से चलकर उसके करीब पहुँचा. -"क्या हुआ? तुम इतनी उदास क्यों हो?"
रवि ने इतनी आत्मीयता से पुछा की कंचन भावुकता से भर गयी, जब किसी दुखी मन को कोई प्यार से दुलारता है तो उसके अपनेपन से उसके स्नेह से वो मन और भी भावुक हो जाता है. कंचन को रवि का यूँ आत्मीयता से पुछ्ना उसे और भी भावुक कर गया. वो अपनी भावनाओ पर काबू ना पा सकी और उसकी आँखें भर आई. वो कुच्छ भी जवाब देने के बजाए बस गीली आँखों से रवि को देखती रही. वो कहती भी तो क्या? वो खुद भी तो नही जानती थी कि उसे क्या हुआ है. क्यों अचानक से उसकी दुनिया बदल गयी है, क्यों अब वो पहले की तरह हस्ती बोलती नही है, क्यों अब वो अकेले रहने में सुकून महसूस करने लगी है. क्यों उसका मन हरदम यही चाहता है कि वो कहीं अकेले में बैठकर सिर्फ़ अपने साहेब के बारे में सोचती रहे.
"अरे.....ये क्या?" रवि उसकी आँखों की कोरो पर चमक आए आँसू की बूँदो को देखकर बोला - "तुम रो रही हो? अगर कोई समस्या है तो मुझे बताओ. क्या किसी ने कुच्छ कहा है?"
"आप जाओ साहेब, आपको इससे क्या कि मैं रो रही हूँ कि हंस रही हूँ. मुझ ग़रीब के हँसने रोने से आपके सम्मान को कोई ठेस नही पहुँचने वाली." कंचन रुन्वासि होकर बोली.
"अगर तुम कल की बात को लेकर दुखी हो तो प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो. लेकिन तुम खुद ही सोचो उस दिन हवेली में मेरे कपड़ों के साथ जो हुआ-क्या वो ठीक था?"
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