RE: Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा
सुनीता एक दम से बेसुध अपने बेटे के बारे में ही सोच रही थी कि तभी उसे किसी ने झिंघोडा वो तुरंत ही सकपका कर उठ गई,
राजू-- चाची बहुत देर हो गई है.... आप घर जाओ मैं यहां हॉस्पिटल में हूं भईया के साथ,
पारुल--- हा सुनीता जी , राजू ठीक क रहा है,, आप घर जाओ और वैसे भी आप ज्यादा टेंशन लोगे तो आप की भी तबियत बिगड़ जाएगी.....।
सुनीता... को तो जैसे कुछ होश ही नहीं था वो तो जैसे सोनू को छोड़ के जाने वाले बात पर ही मुंह उधर कर ली...।
सुनीता-- नहीं मै कहीं नहीं जाऊंगी अपने बेटे को छोड़ कर...।
पारुल-- देखिए सुनीता जी आप बेवजह परेशान हो रही हैं। सोनू एकदम ठीक हैं, और वैसे भी हॉस्पिटल में राजू हैं ना....।
पारुल की बात सुनकर वहां पर खड़ी फातिमा, और अनीता भी ज़ोर देने लगी ।
आखिरकार सुनीता को घर आने के लिए मानना ही पड़ा.... सुनीता अनीता और फातिमा के साथ घर लौट आईं......।
रात के करीब 8 बज गए थे.... सुनसान रास्ते पर सुनीता के साथ अनीता और फातिमा चली आ रही थी।
फातिमा (अनीता से)-- अनीता ये सब कैसे हुआ?
अनीता ने भी फातिमा से पूरी आप बीती सुना डाली.....।
ये सुन फातिमा का चेहरा गुस्से में लाल हो गया हालांकि रात के अंधेरे में फातिमा का चेहरा ना तो सुनीता देख सकती थी और ना ही अनीता....।
सुनीता (गुस्से में)-- जब चुदाने की उसके गांड़ में ताकत नहीं थी तो क्यूं चूद्वाने गई थी साली और तू सुनीता अपने ही बेटे को... छी। कैसी मा हैं तू, भला इसमें सोनू की क्या गलती हैं....।
ये सुन सुनीता रोने लगती है.....।
सुनीता (रोते हुए)-- हा री.... फातिमा ... लेकिन मै क्या करती उस वक़्त मुझे कुछ सूझा नहीं और मैंने ये सब अनजाने में..... और फिर उसकी मूसलाधार आंसुओ कि बारिश होने लगती है....।
फातिमा और अनीता ने सुनीता को संभाला और घर पर ले आई....।
घर पर जैसे ही वो तीनो पहुंचते है .... कस्तूरी अपनी गांड़ टेढ़ किए हुए चल कर आती है..... उसे देख कर ही लग रहा था कि कस्तूरी की गांड़ बड़ी बेरहमी से सोनू ने मारी है। क्युकी उसकी चाल एकदम से बदल गई थी।
कस्तूरी--- .... कैसा है सोनू बेटा?
फातिमा गुस्से में जैसे ही कुछ बोलने जा रही थी कि सुनीता ने फातिमा का हाथ पकड़ लिया और बोली।
सुनीता-- अब ठीक है।
ये सुन कस्तूरी के भी जान में जान आती है....।
कस्तूरी--- हे भगवान तेरा लाख लाख शुक्र है.... जो सोनू सही सलामत है.... वरना मै अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाती।
उस रात सुनीता ने बेमन से खाना खाया वो भी फातिमा के इतना कहने पर.... और फिर जैसे तैसे रात काटने के इंतजार में सुनीता खाट पर लेट गई.... नींद तो उसके आंखो से कोषों दूर था, वो तो बस सुबह का इंतज़ार कर रही थी और भगवान से इतना ही प्रार्थना कर रही थी कि मेरा बेटा मुझसे रूठे ना..... खैर जैसे तैसे पूरी रात काट ली सुनीता ने एक झपकी भी नहीं ली सुनीता ने पूरी रात.... सुबह के ६ बज रहे थे।
सुनीता फाटक से खाट पर से उठी और अनीता को जागते हुए....।
सुनीता-- अनीता.... ऐ अनीता।
अनीता नींद से जागती हुई अपनी आंखे खोलते है....।
अनीता-- अरे दीदी क्या हुआ?
सुनीता-- चल हॉस्पिटल चलना है.... मुझे।
अनीता-- हा दीदी वो तो ठीक है.... कुछ खाना पीना भी तो बना कर ले चलना है.... हॉस्पिटल में राजू और सोनू क्या खाएंगे?
सुनीता-- हा... हा तूने सही कहा चल उठ खाना बनाते हैं.....।
सुनीता , अनीता के साथ फटाफट खाना तैयार करती है दिन अब ८ बज गए थे.... इतनी कड़ाके की ठंडी कोहरे की चादर ओढ़े ओश की बूंदे बनकर टपक रही थी.... हालत खराब कर देने वाली थी ये ठंडी।
सुनीता और अनीता कम्बल ओढ़े अस्पताल की तरफ निकल पड़ते है....।
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