RE: Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा
सुबह सुनहरी आंख खुली वो जैसे ही खाट पर से उठ रही थी, उसके बुर में उसे दर्द महसूस हुआ, वो उठकर मुतने के लीये आगंन की ओर जाने लगी,
वो भचक भचक कर चल रही थी, तभी आगन मे झाड़ू लगाती सुनीता की नज़र सुनहरी पर पड़ी,
सुनीता--क्यां हुआ दीदी , ऐसे क्यू चल रही हो?
सुनहरी को कुछ समझ में नही आ रहा था की, क्या बहाना मारे
सुनहरी-- पता नही क्यूं, एड़ीयो में दर्द सी उठ रही है,
सुनीता-- लगता है, मोच आ गयी है,
सुनहरी-- हां मुझे भी यही लग रहा है, और कहकर अपनी साड़ी उठाकर आग्न के नरदे के पास बैठ मुतने लगती है,
सोनू की निदं तब खुलती है, जब उसे कस्तुरी जगाने जाती है, सोनू उठकर बाहर आता है, और हाथ मुह धो के वही बाहर बैठ जाता है,
सुबह के 10 बज गये थे, लेकीन अभी तक ओस की चादर ओढ़े दीन नही निकला था, गलन इतनी ज्यादा थी की, सोनू को घर के अंदर वापस आना पड़ा।
सोनू जैसे ही ओसार में आता है, घर की चारो औरतें आग के पास बैठी हाथ सेंक रही थी,
सोनू भी एक कम्बल ओढ़ कर खाट पर बैठ जाता है, सुनहरी की नज़र जैसे ही सोनू से टकराती है, वो शर्मा जाती है,
तभी बाहर बादल गरजने लगता है,
कस्तुरी-- ये लो दीदी, कुछ देर में फीर से बारीश चालू हो जायेगी,
सोनू मन में-- अरे यार सोनू, तुझे यहां तो कुछ मिलने वाला नही है, पुरे दीन ये लोग साथ में ही बैठी रहेगी, एक तो मौसम भी खराब है, तो ये लोग घर से बाहर भी नही निकलेगीं,
मुझे अभी सोहन के घर निकलना होगा, फीर पुरे दीन उसकी गांड मारने का मजा लूगां,
यही सोचते सोचते वो खाट पर से उठा, और पैर मे चप्पल डालता हुआ बाहर निकल जाता है,...
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