RE: Hindi Kamuk Kahani जादू की लकड़ी
हम पहाड़ी के चोटी पर बने उस मंदिर में थे,मंदिर छोटा सा ही था लेकिन पहाड़ की चोटी पर होने के कारण दूर से दिखता था,शिव के उस मंदिर में एक शिव लिंग की स्थापना की गई थी ,वो मंदिर कम और इस बाबा जी का आश्रम ज्यादा थी …
पास की कुटिया में उन्होंने हमे बिठाया जो केवल एक झोपड़ी सा था ,मैं उनके सामने बैठा था मेरे बाजू में टॉमी बैठा हुआ था,
मेरे सामने एक अग्निकुंड था जो की अभी ठंडा था ..
“यंहा क्या कर रहे हो बच्चे ..”
उनकी बात सुनकर पता नही मुझे क्या हुआ मानो इतना सारा दुख जो मैं दो दिनों से अपने अंदर ही दबा कर रखा था वो बाहर फुट पड़ा मैं जोरो से रोया …
रोते रोते मैंने उन्हें पूरी बात बतला दी की कैसे मैं यंहा तक आया ,साथ ही मैंने ये भी बता दिया की कैसे निशा और चंदू ने मिलकर मेरा माजक उड़ाया और वो ऐसा क्यो करते है,सभी चीजे जो मेरे दिल में सालो से था……
वो काफी देर तक मुझे बिना टोके ही मेरी बात को सुनते रहे …..
जब मैं शांत हुआ तो उन्होंने मुझसे बस ये कहा
“भूख लगी है “
मैंने हा में सर हिलाया ,उनके होठो में एक मुस्कान आ गई
वो मेरे साथ झोपड़ी से बाहर आये और पहाड़ी से नीचे की ओर इशारा किया ,
“वंहा तुम्हे कुछ फल और कंदमूल मिल जाएंगे ,अपने लिए और मेरे लिए ले आओ “
मेरा तो चहरा ही उतर गया ,मुझे फिर से नीचे जाना था और इनके लिए भी फल लाने थे …
“लेकिन महाराज अगर कोई जानवर फिर से मुझपर आक्रमण कर दिया तो “
मेरी बात सुनकर वो जोरो से हंसे
“रुको ..”
वो झोपड़ी के अंदर गए और जब वो बाहर आये तो उनके हाथो में एक छोटी सी त्रिशूल थी उसे उन्होंने मुझे थमा दिया,साथ ही दूसरे हाथो में एक छोटा सा लकड़ी का टुकड़ा था कुछ एक उंगल जितना लंबा ,बेलनाकार ...उसे उन्होंने मुझे दिया
“ये कोई आम लड़की का टुकड़ा नही है ये जादुई लकड़ी का टुकड़ा है,अगर कोई मुसीबत आये तो इसे चाट लेना ,तुम्हारे अंदर इतनी ताकत आ जाएगी की तुम चीता ,शेर ,हाथी ,आदमी सभी तरह के जानवरो को पछाड़ दोगे…”
मैंने उन्हें आश्चर्य से देखा लेकिन वो मेरी बात सुनकर बस मुस्कुराए
“ये चंदन का एक छोटा सा टुकड़ा ही है जिसे मैंने अपने मंत्रों से सिद्ध किया है ,अब ये कोई सामान्य चीज नही है,मानो ये कोई मनी है,जिसे मिल जाए उसकी जिंदगी बना दे,वो हर चीज दिला दे जो वो चाहता है ,ताकत,हिम्मत ,हौशला,और जिसकी तुम्हारे अंदर बहुत कमी है आत्मविस्वास और आकर्षण ये जब तुम्हे सब कुछ देगा …….”
उनकी बात सुनकर मुझे माँ की बात याद आ गई मुझे लगा जैसे भगवान ने मेरी सुन ली और ये फरिश्ता मेरे पास भेज दिया ,मैं खुसी खुशी टॉमी को लेकर नीचे चला गया ….
शाम से रात हो गई थी जब मैं वापस आ रहा था ,लेकिन रात के उस अंधियारे में भी डर की कोई छोटी सी लकीर मेरे जेहन में नही थी ,जबकि ये रात का अंधियारा और ये अकेलापन भी मुझे बड़ा ही सुहा रहा था क्योकि मन में कोई डर नही था,मुझे हमेशा लग रहा था की कोई अदम्य शक्ति मेरे साथ है जो की वक्त पड़ने पर मुझे किसी भी मुसीबत से निकाल देगा,मैंने बहुत से फल टोकरी में भर लिए थे ,टॉमी तो अपना जुगाड़ खुद ही कर रहा था ,जीवन में पहली बात मुझे पता चला की बिना डर के जीना क्या होता है,निर्भीकता क्या होती है ,साहस और शांति क्या होती है……
मैं झूमता हुआ गुनगुनाता हुआ मस्ती में टॉमी के साथ बड़े ही मजे से पहाड़ी चढ़ कर फिर से आश्रम तक पहुच गया ,बाबा जी ध्यान में बैठे थे ,तब तक मैं ऊपर रखे एक पत्थर पर बैठा दूर देखने लगा ,दूर दूर तक बस जंगल ही जंगल था ,रात होने के साथ चांद की रोशनी में वो जगह किसी जन्नत से कम ना थी ,इसीलिए साधु सन्यासी जंगलों की ओर चले आते है,हवाओ में थोड़ी सी ठंड होने लगी थी ,कभी कभी थोड़ी कपकपी सी लग जाती ..
थोड़ी देर बाद ही बाबा जी बाहर आये और मुझे देखकर अपने पास बुला लिया,मैंने अपने साथ लाये हुए फल और कुछ कंदमूल उन्हें धो कर दिए ,और पास ही बैठकर मैं भी खाने लगा ….
“तुम मंदिर के अंदर ही सो जाना ,बाहर रात होने के साथ साथ ठंड और भी बढ़ेगी “
मैंने हा में सर हिलाया …….
सुबह होते ही मैं उनके साथ पास की नदी में नहाने और पानी लेने चला गया,आते आते उनके साथ कुछ लकड़ियां भी बीनते हुए ले आये,साथ ही कुछ फल और पत्ते और कंदमूल भी ,उन्होंने मुझे बताया की क्या खाते है क्या नही खाते,किस पेड़ की जड़ को खाया जाता है,और कुछ ऐसे पेड़ और पौधों के बारे में उन्होंने बताया की मैं सुनकर दंग ही रह गया,सच में प्रकृति हमे कितना कुछ देती है ……
ऊपर आते ही उन्होंने कहा की इतना पानी मेरे लिए ही काफी होता है तुम और पानी ले आओ ,नदी कुछ किलोमीटर दूर थी लेकिन मेरे पास समय ही समय था ..मैं खुसी खुसी फिर से नीचे चला गया मैं अपने पर खुद ही हैरान था की मेरे अंदर इतनी ऊर्जा कहा से आ रही है,मैं थक ही नही रहा था,वो लड़की अब भी मेरे पास थी,पानी लाकर मैं फिर से नीचे फल और कंदमूल की तलाश में निकल पड़ा और शाम होने से पहले तक लकड़ियो के साथ वापस भी आ गया …
हम शाम का भोजन कर रहे थे ..
“तो वो लकड़ी तुमने सम्हाल कर तो रखी है ना “
“जी महाराज ,ये तो कमाल है ,मुझे अपने जीवन में कभी इतनी ऊर्जा और शांति का अनुभव नही हुआ था,ना ही इतनी निडरता मेरे अंदर कभी भी थी ..”
वो मुस्कुराए
“अभी तो ये बस शुरवात है तुम सोच भी नही सकते की ये तुम्हारे लिए क्या कुछ नही कर देगी ,तुम जिसे चाहो अपना गुलाम बना लोगे तुम्हारी वाणी में वो तेज आ जाएगा ,जो चाहोगे वो पा लोगे तुम्हारे अंदर उतनी ऊर्जा और ताकत आ जाएगी ,शाररिक क्षमता मानसिक क्षमता जो भी तुम बढ़ाना चाहो सब इसके उपयोग से बढ़ा सकते हो ,बस तुम्हे शुरवात करनी होगी बाकी मदद ये कर देगा ,तुम इसे एक ताबीज की तरह बनाकर रख लो मैं तुम्हे रेशम का एक धागा दे देता हु,मेरी तरफ से ये तुम्हारे लिए उपहार है ...अभी तुम्हे कुछ दिन यही रहना होगा,जब गांव से कोई इधर आएगा या फारेस्ट वाले लोग इधर आएंगे तो तुम उनके साथ चले जाना “
उनकी बात सुनकर मुझे कैसा लगा ये तो मैं बता भी नही सकता,मैं उमंग से भर गया था ,मैं इतना खुश था की मेरे आंखों से कुछ आंसू गिर पड़े…
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