RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
कुच्छ देर बाद सबने मिलकर खाना खाया.., मामा जी कुच्छ देर बाहर गार्डन में वॉक करते रहे और फिर सोने चले गये…!
उनके कुच्छ देर बाद मामी जी भी सोने चली गयी.., शंकर भी कुच्छ देर और टीवी देखने के बाद सोने के लिए उठने ही वाला था कि चंपा एक हाथ में एक कटोरी और दूसरे हाथ में एक बड़ा सा स्टील का ग्लास थामे वहाँ आ पहुँची…!
शंकर को सोफे से उठते हुए देखकर बोली – थोड़ा ठहरिए भैईयाज़ी.., देखिए हम आपकी चोट के लिए एक रामबाण दवा बनाकर लाए हैं…!
फिर उसने शंकर को वो ग्लास थमाते हुए कहा – पहले आप इससे पी लीजिए.., देखना सुबह तक आपका पैर का दर्द छूमन्तर हो जाएगा…!
शंकर ग्लास पकड़ते हुए बोला – क्या है इसमें…???
अरे भैया जी.. आप तो गाओं के ही रहने वाले हैं.., जानते ही होंगे की चोट में हल्दी वाला दूध कितना काम करात है.., बस आँख मींच कर पी जाइए…!
शंकर फिरसे सोफे पर बैठकर दूध पीने लगा और वो उसके पैरों के पास ज़मीन पर अपनी गांद रखकर बैठ गयी…, बैठ क्या गयी.., उसने
शंकर के दोनो पैरों को अपनी टाँगों के बीच कर लिया.., और खुद घुटने मोड़ कर बैठी थी…,
चंपा ने अपना घांघरा घुटनो तक चढ़ा रखा था.., वो इस तरह से उसके सामने बैठी की घान्घरे का नीचे का पल्ला नीचे रह गया और उपर का
घुटनो के उपर की ओर होने के कारण उपर टंगा रह गया…!
इतना ही नही, उसने अपनी ओढनी भी नही ले रखी थी.., चौड़े गले की उसकी चोली से उसके दोनो कसे हुए कलमी आम शंकर की ठीक
नज़रों के सामने थे.., जो बेहद टाइट चोली के अंदर ऐसे फडफडा रहे थे मानो दो कबूतर पिंजरे से बाहर आना चाहते हों…,
वो इतना अनाड़ी भी नही था कि उसकी मंशा को ना समझ पाए.., अब वो खुद अपना लहंगा पसारे सामने बैठी है तो कुच्छ तो इनाम उसे
मिलना ही चाहिए, इसलिए शंकर ने उसके साथ मज़े लेने का मन बना लिया…!
उसने अपना सही वाला पैर थोड़ा सीधा कर लिया जो चंपा के लहंगे की छतरि के नीचे उसकी केले जैसी मोटी और नंगी जाँघ से टच हो
गया.., चोट वाला पैर थोड़ा मोड़ कर चंपा के हाथ में था…!
चंपा ने कटोरी से लेप लिया और उसके पैर पर लगाने लगी..,
शंकर कुच्छ हद तक जानता था कि वो क्या लेप है.., लेकिन फिर भी अंजान बनते हुए कहा – ये क्या है चंपा बेहन…???
चंपा ने जब देखा कि शंकर का एक पैर उसकी मोटी जाँघ से टच हो रहा है तो उसने अपनी एक टाँग को, जो कि उसके चोट वाले पैर की
तरफ थी उसे सीधे करते हुए उसने अपनी गान्ड को और आगे सरकाते हुए बोली –
ये आमिया हल्दी है, इसके लेप से देखना सुबह तक पता भी नही चलेगा कि आपको कहीं चोट भी लगी थी…!
चंपा के आगे सरकने से अब शंकर का सीधे वाला पैर उसकी चूत के बेहद नज़दीक था.., इतना नज़दीक कि अगर वो अपने पैर के अंगूठे को उपर नीचे करे तो वो उसकी चूत की मोटी मोटी गुदाज फांकों से रगड़ने लगे…!
चंपा ने शंकर के चोट वाले पैर को अपनी जाँघ पर टीकाया और हल्के हाथ से उसके पैर पर लेप लगाने लगी.., और साथ ही वो शंकर की
तरफ और खिसकती जा रही थी..,
जैसे ही वो थोड़ा और खिसकी की शंकर के पैर का अंगूठा उसकी चूत की फांकों से टच हो गया.., जो की एकदम नंगी थी.., उसने नीचे
कच्छी भी नही पहनी थी…!
शंकर को जैसे ही ये पता चला कि वो नीचे एकदम नंगी है और उसके पैर का अंगूठा उसकी नंगी चूत की फांकों पर रखा है जिसके आस
पास थोड़ा सा जंगल भी है.., उसका लंड पाजामा में खड़ा होने लगा…!
चंपा लेप लगाते हुए बोली – अब कैसा लग रहा है भैया जी…?
शंकर – कुच्छ राहत सी लग रही है..,
चंपा – तो अपना अंगूठा चलाओ ना..,
शंकर – कॉन सा वाला…?
चंपा – दोनो एक साथ चलाओ…, तभी तो पता चलेगा कि किस्में दर्द होता है और कितना…???
शंकर चंपा की बात का मतलब समझ गया था फिर भी उसने चोट वाले पैर का अंगूठा चलाते हुए कहा – आहह.. अभी थोड़ा दर्द है…,
चंपा – अब दूसरा भी चला कर देखो.., पता चले उसमें तो कोई दर्द तो नही है..?
शंकर – उसमें कहाँ से दर्द होगा.., उसमें चोट थोड़ी ना लगी है..,
चंपा – अरे आप समझते काहे नही उसको भी चला कर देखना ज़रूरी है.., चलाइए ना…!
शंकर ने मुस्कराते हुए अपने दूसरे पैर के अंगूठे को जैसे ही मूव्मेंट दिया.., चंपा ने अपनी टाँगें और खोल दी और वो उसकी फांकों के बीच उपर नीचे होने लगा…!
हां भैया जी ऐसे ही चलाते रहो.., पता चले कितना असर होता है दवा का..,
उधर शंकर का अंगूठा चंपा की मोटी मोटी फांकों के बीच की दरार में उपर नीचे हो रहा था जिससे चंपा की चूत में सुरसूराहट तेज होती
जा रही थी, और वो अंदर से गीली होने लगी थी…!
बस किसी तरह चूत का मूह थोड़ा खुलना चाहिए और उसका मोटा सा अंगूठा वो अपनी चूत के च्छेद में घुसा सके…, इसी कोशिश में चंपा
अपनी गान्ड को धीरे धीरे इधर उधर कर रही थी..,
जिसका फ़ायदा भी होता जा रहा था और शंकर के पैर का अंगूठा धीरे-धीरे ही सही फांकों के बेच में समाता जा रहा था…!
इधर शंकर की उत्तेजना ये सोच कर बढ़ती जा रही थी की उसका अंगूठा चंपा की मालपुए जैसी चूत की गुदगुदी फांकों में घुसता जा रहा है…!
अब चंपा की चूत पूरी तरह गरमा चुकी थी, अब उसका रस धीरे धीरे बाहर आने लगा था और चूत गीली होने लगी.., अब वो उसके पैर पर
अपना दबाब बढ़ाने लगी.., जिससे उसका अंगूठा और अंदर तक रगड़ने लगा…,
दोनो ही अब ये भूल चुके थे कि वो यहाँ किस मक़सद से बैठे हैं.., बस अब दोनो दो गूंगों की तरह बस अपनी वासना के भंवर में गोते लगा रहे थे…,
जैसे ही शंकर का अंगूठा उपर जाकर उसकी चूत की क्लिट जो अब किसी कन्कौये की तरह चोंच खड़ी कर चुकी थी उससे जब रगड़ ख़ाता
तो चंपा अपने निचले होठ को दांतो में दबाकर अपनी सिसकी को मूह से निकलने से रोकने की कोशिश करती…,
फिर भी एक दो बार उसकी आअहह… निकल ही गयी.., अब वो बिल्कुल किनारे पर पहुँचने वाली थी.., अचानक उसके मूह से निकल पड़ा.., आहह..भैया जी थोड़ा तेज तेज करो ना…!
शंकर के अंगूठे की रफ़्तार तो वैसे ही तेज होती जा रही थी.., फिर एक बार जैसे ही उसका अंगूठा उसके सुराख के मूह पर आया..,
चंपा ने आगे को झुक कर शंकर का पैर मजबूती से पकड़ लिया और उसे अपनी चूत पर दबा दिया.., शंकर का पूरा अंगूठा उसकी रस छोड़ती चूत में गcछcछ्ह… से घुस गया….!
अंगूठे के अंदर घुसते ही शंकर ने उसे स्थिर कर दिया, चंपा का शरीर किसी सूखे पत्ते की तरह काँपने लगा और वो बुरी तरह से उसके पैर को अपनी चूत पर दबाते हुए झड़ने लगी…..!!!!
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