Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
10-16-2019, 07:23 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
उधर उन तीनों के कॉलेज चले जाने के बाद वर्षा देवी नौकरों को काम समझाकर अपने कमरे में चली गयी.., उन्हें अभी भी ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो शंकर उनके यौवन का रस्पान कर रहा है…!

बड़े बुजुर्ग कह गये हैं “सोते हुए शेर को जगाना अच्छा नही होता” वरना वो बहुत ख़तरनाक हो जाता है.., ठीक उसी तरह औरत की काम इच्छा जब तक सो रही है तब तक ही ठीक है.., एक बार जाग गयी तो उसे संभालना खुद को ही भारी पड़ता है…!

यही हाल इस समय वर्षा देवी का हो रहा था.., बीते लगभग एक डेढ़ साल से उनका अमृत कुंड तो जैसे सूख ही गया था.., पति की ढलती उम्र, उपर से बढ़ते बिज़्नेस का बोझ, वो तो जैसे अपनी पत्नी की इच्छाओं को भूल ही चुके थे…!

पति की मजबूरियों के चलते नारी लज्जा बस बेचारी वर्षा देवी भी अपनी इच्छाओं को मार ही चुकी थी…, लेकिन अभी उनकी उमर ही क्या थी..? 35-40 के बाद तो औरत भरपूर जवान होती है.., इस उमर में तो कई औरतें नये-नये जवान लंड की तलाश करती रहती हैं..,

लेकिन घर और समाज की मर्यादाओं ने वर्षा देवी बाँध रखा था, घर में जवान होती बेटी है, इसलिए उन्होने अपने मन को समझकर हालातों से समझौता कर लिया था.

लेकिन आज रात की अपनी भांजी की धुँआ-धार चुदाई को देखने के बाद उनकी दशा, दिशा और सोच को ही बदल डाला, रुका हुआ अमृत कलश छलक पड़ा था जो अब बार बार छलक्ने को बेताब था..,

कमरे में आते ही एक बार उन्होने आदमकद आईने में अपने आप को उपर से नीचे तक निहारा…, इस उमर में अक्सर बड़े घरों की औरतें बेडौल हो जाती हैं..,

पेट इतना बाहर आ जाता है कि कितनी ही खूबसूरत औरत क्यों ना हो पेट के बाहर आते ही उसकी अगाड़ी और पिछाड़ी दोनो का ही लुक खराब हो जाता है…, औरत रूई के बोर जैसी दिखने लगती है…!

लेकिन वर्षा देवी ऐसी नही थी, अब्बल तो वो नौकरों के साथ हाथ बँटाती रहती थी, चाहे वो घर का काम हो या गार्डेन का जो उनकी विशालकाय कोठी के बड़े से कॉंपाउंड का ही एक हिस्सा था.

साथ ही मेंटेंड डाइयेट के साथ साथ रोज़ सुबह उठकर वो गार्डेन में चक्कर लगाती रहती थी, थोड़ी बहुत एक्सर्साइज़ भी करती रहती थी, इस वजह से उनका पेट आगे नही आपाया था…

लेकिन उम्र के साथ साथ उनका वक्षस्थल और तशरीफ़ दोनो में बदलाव आ गया था, इसलिए वो अब 36-32-38 के फिगर में थी.., लेकिन हाइट अच्छी होने के कारण उनका ये फिगर और ज़्यादा सेक्सी लगता था…!

आईने में देखते हुए उनके हाथ स्वतः ही अपने बदन पर चलने लगे.., गले से उतरते हुए नीचे आने से पल्लू नीचे गिर गया, डीप ब्लाउस से दोनो चट्टानों की ढलान, उनके बीच की खूब गहरी खाई किसी का भी लंड खड़ा कर देने के लिए काफ़ी थी..

अपने इस जान मारु यौवन को देख कर वो खुद से ही शर्मा गयी.., मस्ती का ऐसा खुमार च्चाया की दोनो हाथों से अपने यौवन का मर्दन करने लगी…!

आगे पीछे सब तरफ से अपने आप को निहारते हुए वो मन ही मन बुदबुदाई – तू अभी भी जवान है वर्षा… कोई भी मर्द तुझे देखकर चोदने के लिए बाबला हो सकता है.., कहते हुए उन्होने अपनी साड़ी निकाल फेंकी…!

मात्र पेटिकोट में अपने कलश जैसे नितंबों को देख कर वो खुद ही उन्हें मसलने लगी.., कभी अपनी चुचियों को मसल्ति तो कभी अपने विशाल मखमली नितंबों को…!

उनकी काम वासना बढ़ती जा रही थी, दोनो केले के तने जैसी मोटी चिकनी जांघों के बीच गीलेपन का एहसास होने लगा..,

उनके हाथ मशीनी अंदाज में अपने बदन पर चलने लगे.., एक-एक करके सारे बदन के कपड़े साथ छोड़ते गये और वो आईने के सामने मादरजात नितन्ग नंगी खड़ी थी…!

आईने के सामने मदरजात अपना रेशमी बदन देखकर वर्षा देवी एक बारगी खुद ही शरमा गयी, उनकी पलकें शर्म से झुक गयी…, अपने सुन्दर गदराए मखमली बदन को देखने के लालच ने उन्हें फिरसे आईने में झाँकने के लिए मजबूर कर दिया…!

वासना की खुमारी, रात की बैचानी उनके तन मन पर हाबी होने लगी.., उनके हाथ फिरसे हरकत करने लगे…और..और..उन्होने दोनो कबूतरों को अपने शिकंजे में कस लिया…!

अपने पके हुए दोनो दशहरी आमों को मसल्ते हुए वो आहें भरने लगी.., कभी अपने निप्पलो को पकड़ कर मरोड़ देती, तो कभी उनको अपने थूक से गीला करके अपनी हथेली से मसल देती…!

ऐसा करने से उन्हें एक असीम सुख की अनुभूति होने लगती…, उनकी दोनो जांघों के बीच का गीलापन और बढ़ने लगा…!

वर्षा देवी इस समय खुद के लिए ही रति का स्वरूप प्रतीत हो रही थी.., वो कल्पना के सागर में डूबते हुए अपने ही हाथों को शंकर जैसे किसी जवां मर्द को फील करते हुए पूरे बदन पर फेरते हुए उत्तेजना के चरम को छुने का निरंतर प्रयास में लगी थी…!

अपने मुलायम नरम मखमली बदन को सहलाते हुए उनका हाथ जांघों के बीच जा पहुँचा जहाँ अमृत का सागर हिलोरें मार रहा था.., शीशे में देखते हुए उन्होने अपनी टाँगों को खोला, जहाँ उन्हें दो मोटे मोटे मुलायम होठों के बीच की दरार से होते हुए उस अमृत कुंड का द्वार मिल गया…!

अपनी चूत की फांकों को सहलाते हुए उन्हें अपार सुख का एहसास होने लगा.., फिर जैसे ही उनकी उंगली ने जो खुद के ही कामरस से गीली हो रही थी… उसे बूँद बूँद रिस्ति हुई सुरंग के अंदर प्रवेश करा दिया…!

सस्सिईइ…आअहह….शंकर….मेरे राजाअ…कहाँ हो तुम…, अपनी रानी की तड़प कब मिटाओ..ऊओ..ग्गीए…आआयईी……बोलते हुए उनकी दो उंगलियाँ गीली चूत में समा गयी…!

कुच्छ देर खड़े-खड़े ही वो उंगलियों को अंदर बाहर करती रही…, लेकिन अब उन्हें अपनी चूत में कोई कड़क दमदार चीज़ चाहिए थी डालने के लिए…, उंगलियाँ उनकी चूत की मुराद पूरी करने के लिए ना-काफ़ी साबित हो रही थी…

उनकी खोजी नज़रें चारों तरफ कमरे में घूमने लगी…, कुच्छ ऐसा मिले जिसे वो अपनी चूत में डालकर उसकी खुजली को शांत कर सकें…!

उनकी बैचैन निगाहों को आख़िर वो चीज़ मिल ही गयी…, उन्होने लपक कर ड्रेसिंग टेबल पर पड़े रोलिंग कोंब को उठा लिया जिसका प्लास्टिक का हॅंडल शंकर के लंड की तरह मोटा और लंबा तो नही था.., लेकिन फिलहाल कुच्छ हद तक उनकी चूत को तसल्ली दे सकता था…!

वर्षा देवी ने पहले एक बार उसे अपने मूह में लेकर कुच्छ देर उसे लंड समझकर चूसा.., अपनी लार से उसे खूब गीला किया और फिर उसे अपनी चूत की मोटी-मोटी मुलायम फांकों पर रगड़ने लगी…!

ये एक अलग तरह का ही एहसास था उनके लिए.., कोंब पर दबाब डालते हुए कुच्छ देर वो अपनी चूत की फांकों को उससे रगड़ती रही…, अब उन्हें सबर करना बड़ा मुश्किल पड़ रहा था…, सो साँस रोक कर उन्होने उसका पतले लंड जितना मोटा और लगभग 3” लंबा हॅंडल अपनी चूत में पेल दिया….!

मुद्दतो के बाद कोई कड़क चीज़ उनकी चूत में गयी थी…, खूब रसीली चूत में वो अंदर तक सरक गया…मज़े और हल्के से दर्द का मिला जुला एहसास पाकर उनकी आँखें मुद गयी.., वो उसे धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगी…!

कुच्छ देर बाद स्वतः ही उनके हाथ की गति बढ़ने लगी और वो तेज तेज हॅंडल को अंदर बाहर करते हुए अपनी चूत को चोदने लगी…!

मूह से सिसकियाँ फूटने लगी…, कमर अपने आप आगे पीछे होने लगी…, और फिर वो क्षण भी आगया जिसके लिए वो इतनी देर से प्रयासरत थी…, कमर में एक जोरदार कंपन हुआ और पूरा हॅंडल चूत में ठेस कर वो भल-भलाकर झड़ने लगी…!

जब उनका झड़ना बंद हो गया तो उनकी टाँगें काँपने लगी…, खड़ा रहना दूभर हो गया और वो अपनी टाँगें चौड़ी करके, हॅंडल को चूत में ही चेंपे वो वहीं फर्श पर बैठ गयी…!

साँसें बहुत तेज हो चुकी थी मानो वो मीलों दौड़कर आई हों.., बैठे बैठे उनकी आँखें भी मुन्द्ने लगी.., आज काफ़ी मुद्दत के बाद उन्हें अपार सुख का अनुभव हुआ जिसे वो अपने अंदर समेटना चाहती थी…!

बुझे मन से उन्होने उस कोंब को बाहर निकाला, उठकर उन्होने अपने कपड़े पहने और बिस्तेर पर पड़ते ही उन्हें गहरी नींद ने दबोच लिया…, कुच्छ तो जोरदार स्खलन उपर से रात की आधी अधूरी नींद… वो काफ़ी गहरी नींद में चली गयी…!!!!
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