RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
लाला की बातों से रंगीली को छोड़ सभी के साथ साथ शंकर के भी अरमानो पर पानी फिर गया, वो चाहता था कि आगे पढ़ लिखकर कोई अच्छी सी नौकरी करके अपने परिवार को ग़रीबी की ज़ंजीरों से मुक्त करा सके…!
लेकिन लाला की ना ने उसके अरमानो पर पानी फेर दिया, वो ये भी जानता था, कि उसके परिवार की स्थिति ऐसी नही है कि वो शहर के शुरुआती खर्चों का भी बोझ उठा सकें…
लेकिन इस सबसे रंगीली बहुत खुश थी, जब रात को शंकर ने उससे इस विषय पर बात चलाई…!
शंकर – माँ, मे आगे पढ़ना चाहता था, लेकिन लाला जी की ना ने सब किए कराए पर पानी फेर दिया.., तू ही कुछ कर ना, वो तेरी बात कभी नही टालेंगे…!
रंगीली ने प्यार से उसके बालों को सहलाया, और उसकी ठोडी पकड़कर बोली – पढ़-लिखकर क्या बनना चाहता है तू..?
शंकर – मे अच्छे नंबरों से पास हुआ हूँ माँ, आगे और ज़्यादा मेहनत करके कोई सरकारी नौकरी मिल जाएगी, हमारी ग़रीबी दूर हो सकती है…!
रंगीली – नौकरी करके भी तो तू किसी की गुलामी ही करेगा ना, और कॉन कहता है कि हम ग़रीब हैं…! अरे हम दिल के तो अमीर हैं.., हमारे दिलों में एक दूसरे के लिए प्यार तो है…!
मे नही चाहती कि मेरा राजा बेटा किसी की भी गुलामी करे, अरे वो तो राजा है, राज करना उसकी नियती है…!
शंकर – ये तू कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही है…? अभी भी तो हम लाला जी की गुलामी ही कर रहे हैं ना, उसके बदले में क्या मिलता है हमें..?
दो वक़्त की रोटी, ये मामूली से कपड़े, बस इसी में खुश रहना चाहती है तू, इतने से के लिए तू खुद और बापू दोनो मिलकर लाला जी के लिए जी तोड़ मेहनत करते हो..!
रंगीली – तो पहले हम कोन्से सुखी थे, तेरे बापू सरकारी बोझा ढोते-ढोते कमर झुकने लगी थी उनकी, मेने वहाँ से काम छुड़वा कर यहाँ काम पर रखवाया,
जाकर उनको पुच्छ, वो पहले खुश थे या अब हैं, खेतों पर एक मैयत (मुख्य नौकर) का काम करते हैं, दूसरे मजदूर उनके कहने पर चलते हैं…!
शंकर – तो तू क्या चाहती है, कि मे भी लाला जी के यहाँ मैयत बनकर उनके खेतों में काम करूँ, नही माँ मे ये काम कभी नही करना चाहता…!
रंगीली अपनी पुतलियों को उपर चढ़ाकर कमरे की छत को घूरते हुए बोली –
मे भी नही चाहती कि तू किसी की मेहनत मज़दूरी करे, मे चाहती हूँ कि मेरा बेटा इस हवेली पर ही नही बल्कि इस पूरे इलाक़े पर राज करे………!
अपनी माँ के मुँह से ये लफ़्ज सुनकर शंकर फटी फटी आँखों से उसे घूरता ही रह गया…, उसके दिमाग़ में आँधियाँ सी चलने लगी, उसे समझ नही आ रहा था कि आख़िर उसकी माँ चाहती क्या है…?
वहीं रंगीली के चेहरे पर एक रहस्यमयी, किंतु विश्वास से भरी हुई मुस्कान थी जिसे समझना शंकर जैसे अल्प विकसित दिमाग़ वाले युवक के बस के बाहर था….!
सुषमा की प्रेग्नेन्सी को 3 महीने हो चुके थे, शंकर ने अपनी आगे पढ़ने की इच्छा को अपने दिल की गहराइयों में दफ़न कर लिया..,
लाला ने सेठानी के कहने पर बहू सुषमा को शहर के हॉस्पिटल ले जाकर उसका गर्भ चेक कराया, जिसकी रिपोर्ट के मुतविक बेटा ही आया…!
शंका का निवारण होते ही, हवेली में मानो खुशियों की बाहर आ गयी, उधर लाजो और ज़्यादा जल-भुन उठी…,
एक दिन लाला ने गोद भराई की रस्म के तौर पर हवेली में बड़े से झलसे का आयोजन किया, अपनी दोनो बेटियों को भी बुलाया…!
बड़ी बेटी प्रिया एक बेटी की माँ बन चुकी थी, लेकिन छोटी बेटी सुप्रिया को अभी कोई बच्चा नही था…, दोनो बेटियाँ भी अपने भतीजे होने की खुशी सुनकर दौड़ी चली आई…!
बड़ी बेटी प्रिया थोड़ी घमंडी टाइप की थी, बिल्कुल अपनी माँ पार्वती देवी की तरह, वहीं सुप्रिया शांत और मिलनसार स्वभाव की थी, वो मालिक और नौकर में कोई भेद नही करती थी..
वहीं प्रिया, नौकरों को हर संभव मौका तलाश कर अपने रुतवे और पैसों के घमंड में अपने पैर की जूती समझती थी…
जहाँ सुप्रिया बचपन से ही शंकर और उसकी माँ रंगीली से काफ़ी घुली मिली थी वहीं प्रिया उन दोनो को भी दूसरे नौकरों की तरह ही हर समय झाड़ती रहती थी, अपने पैरों की जूती समझती थी…
शंकर की जवानी देख कर सुप्रिया उसके कामदेव जैसे ऊप पर आशक्त हो गयी, उसकी शादी के वक़्त वो जवान हो रहा था,
पर वो तब भी उसे बहुत पसंद करती थी, लेकिन अब तो उसकी दाढ़ी मूँछे भी आना शुरू हो रही थी, और क्या सजीला रूप निखरा था पट्ठे का.
उस जमाने के फिल्मी हीरो भी कहीं नही ठहर पाते, सो सुप्रिया की पुरानी चाहत उसके दिल के रास्ते आँखों तक आ गई…!
वो उसके मर्दाने रूप जाल में खिचती चली गयी, लेकिन सामाजिक प्रतिष्ठा को मद्देनज़र रखते हुए वो अपने मन की बात ज़ुबान तक नही ला पा रही थी…!
वो दोनो ही पहले से ज़्यादा सुंदर दिखने लगी थी, प्रिया तो माँ भी बन चुकी थी, सो उसका बदन थोड़ा ज़्यादा हो गया था यही कोई 34-30-36 का फिगर होगा…
लेकिन सुप्रिया अभी भी 32-28-34 की स्लिम लड़की ही थी, शायद पति के लंड के स्वाद ने उसके निखार में ज़्यादा बढ़ोत्तरी नही की थी…!
पुरुष और नारी के फ़र्क और आकर्षण से अब शंकर भी अंजान नही था, सो तिर्छि नज़र से उसने भी सुप्रिया को चाहत भरी नज़रों से देखा..,
किसी तरह दोनो की नज़रें एक हुई, दोनो ने एक दूसरे को समझा, जहाँ उन्हें एक दूसरे के प्रति प्रेम और आदर दिखाई दिया…!
शंकर ने दोनो को हाथ जोड़कर नमस्ते किया, सुप्रिया ने मुस्कुरा कर उसके अभिवादन का जबाब हाथ जोड़कर ही दिया,
वहीं प्रिया, अपना टेडा मुँह करके बोली – हां.. ठीक है, ठीक है, जाओ अपना काम करो, यहाँ तुम्हारी नमस्ते का कोई भूखा नही बैठा…!
सुषमा को उसकी ये बात कुछ ज़्यादा ही नागवार गुज़री, वहीं सेठानी का तो स्वभाव ही अपनी बेटी से मेल ख़ाता था…!
रंगीली सुषमा के अधिक नज़दीक रहती थी, प्रिया को उसकी ये आदत अच्छी नही लगी और उसने उसे खरी खोटी सुनाते हुए कहा –
हम सब समझते हैं कि तुम जैसी नौकर ऐसे मौकों पर अपने नेग लेने के चक्कर में तीमारदारी दिखाने का ढोंग करती है, जाओ, जाकर अपना काम करो, यहाँ हम सब हैं भाभी का ख्याल रखने के लिए…
उसकी बात सुनकर रंगीली लहू का सा घूँट पीकर रह गयी, वहीं शंकर एक पल भी वहाँ नही ठहरा…!
अपनी ननद के इस तरह के व्यवहार पर सुषमा ने तीखी प्रतिक्रिया देने की कोशिश की, लेकिन रंगीली ने उसका हाथ दबाकर उसे शांत रहने का इशारा किया…!
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