RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
चुदैल बहू, अपनी आँखें बंद करके सिसकारी लेती हुई पूरा लॉडा बड़े आराम से अपनी सुरंग में ले गयी…!
लाला अपनी बहू की गरम चूत मारकर खुशी से फूले नही समाए.., उसके आमों को चूस्ते हुए वो उसे हुमच-हुमच कर चोदने लगे....!
चुदाई की मास्टरनि लाजो अपनी कमर उच्छाल-उच्छाल कर ससुर का लंड जड़ तक अपनी चूत में लेने लगी..,
आज मुद्दतो बाद उसकी चूत की मन मुताविक कुटाइ हो रही थी.., अपने ससुर का मतवाला लंड लेकर वो मन ही मन खुश होकर चुदाई का आनंद लूटने लगी…
जब दोनो का ज्वालामुखी शांत हो गया, तो वो अपने कपड़े पहनकर ससुर के मतवाले लंड को चूमकर अपनी गान्ड मटकाती हुई बैठक से बाहर जाने लगी…
पीछे लाला अपने लंड को शाबासी देते हुए बोले – वाह मेरे शेर, अब जल्दी से अपना कमाल दिखा, और बहू को ग्यभन कर्दे…,
उधर जब रंगीली को लगा कि अब इनकी रासलीला ख़तम हो गयी, और ये पायल छन्काति हुई बाहर आ रही है, वो लपक कर वहाँ से हट गयी, और अपने काम में लग गयी….!
उसने जैसा सोचा था वैसा ही हो रहा था, छोटी बहू को अपने ससुर से चुदवा कर वो बड़ी खुश थी, अब लाला उससे कभी ऊँची आवाज़ में बात नही कर सकता था…
बाहर आकर जैसे ही उसका सामना रंगीली से हुआ, उसने छेड़ते हुए कहा – क्या बात है छोटी बहू, बहुत देर लगा दी ससुरजी को ठंडाइ पिलाने में…!
लाजो ने शरमा कर अपनी नज़रें झुका ली और उसके नज़दीक आकर बोली – थॅंक यू काकी, आपने रास्ता बताकर मेरी समस्या का समाधान करवा दिया…!
रंगीली अपने मुँह पर हाथ रख कर बोली – हाए दैया…इसका मतलब पहली मुलाकात में ही सब काम हो गयी..?
तुम तो बड़ी तेज निकली बहू रानी.., जाते ही ससुरजी के हथियार पर धाबा बोल दिया क्या..?
लाजो ने शर्म से अपना सिर झुका लिया और मुस्कराते हुए उसने रंगीली को सारी बातें कह सुनाई, जिन्हें वो पहले से ही जानती थी…..!
रंगीली को पूरा विश्वास था, कि अब लाला के बीज़ में वो बात नही रही कि वो किसी के बच्चा पैदा कर सके, किसी को ग्याभन कर सके.., और ये हक़ीक़त जल्दी ही उनके सामने आने वाली थी…,
लेकिन अब बहू और ससुर उसके इशारों पर नाचने वाले ज़रूर थे…!
वो इन दोनो के संबंध की चश्मदीद गवाह ही नही, इस नाटक की पटकथा भी खुद उसी ने लिखी थी……!
लाला और छोटी बहू एक बार शुरू क्या हुए, अब तो वो हर संभव अपने ससुर के लंड पर चढ़ि रहना चाहती थी, इस वजह से अब रगीली और लाला की चुदाई में ब्रेक सा लग गया…!
इसकी भरपाई वो अपने पति रामू से करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वो उतना मज़ा नही ले पा रही थी, जो उसे अब तक लाला के साथ मिलता था…!
दिन महीनो में और महीने साल में बदल गये, लेकिन लाला को लाजो की तरफ से अभी तक कोई खुश खबरी सुनने को नही मिली, वो दोनो अब हताश होने लगे थे !
लाला को अपनी औकात जल्दी ही पता चल गयी, अब उन्हें समझ में आ गया था, कि वो अब इस काबिल नही रहे कि किसी को ग्याभन कर सकें,
लेकिन लाजो को इस बात का कोई टेन्षन नही था, उसे कम से कम एक भरपूर लंड से चुदाई का साधन तो मिल गया था, जिसे अब वो किसी कीमत पे छोड़ना नही चाहती थी…,
लाला ने एक दो बार उसे मना भी किया, बहू अब कोशिश करना बेकार है तुम अब हमारे पास मत आया करो…,
लेकिन वो कहाँ मानने वाली थी, ज़बरदस्ती उनके लंड को पकड़ कर बोल देती, ससुर जी अब आप ही बताओ मे अब कहाँ जाउ अपनी प्यास बुझाने…?
इस डर से की जवान बहू कहीं बाहर जाकर हर किसी से ना चुदवाने लगे, वो बेचारे उसकी प्यास बुझाने की कोशिश करते रहते………….!
उधर शंकर को जबसे उसकी माँ ने उस अलौकिक आनंद से उसका परिचय कराया था, वो उसे फिर से पाने के लिए ललायत रहने लगा…,
गाहे बगाहे वो अपनी माँ के बदन से लिपट जाता, पीछे से लिपटकर उसके गले को चूम लेता…उसे ये एहसास दिलाने की कोशिश करता कि वो फिर से ऐसा कोई चमत्कार करे जैसा उस दिन किया था उसका लंड चुस्कर…,
लेकिन रंगीली तो कुछ और ही सोच रही थी, जिसका अंदाज़ा शंकर जैसे नादान नव-युवक को कभी नही हो सकता था…!
कई बार वो ऐसा दिखाती कि वो भी उसे लिफ्ट दे रही है, लेकिन वो जैसे ही कुछ आगे बढ़ने की कोशिश करता कि वो उसे झिड़क कर अपने से दूर कर देती…!
इसके पीछे रंगीली का एक ही मक़सद था, कि शंकर अपने आप पर काबू करना सीखे, और दूसरा कारण उसकी कम उम्र, वो नही चाहती थी इस कच्ची उम्र में ही वो अपने वीर्य को यौंही बेकार जाया करता रहे………………..!
आज दोपहर से ही हल्की-हल्की बूँदा-बाँदी हो रही थी, स्कूल से छूटने के बाद शंकर ने अपना और सलौनी का स्कूल बॅग एक बरसाती बॅग में पॅक करके साइकल के कॅरियर पर कसा जिससे उनकी किताबें गीली ना हो और छोटी बेहन को आगे बिठाकर वो घर की तरफ चल दिया…!
थोड़ी ही देर में उनके कपड़े गीले होकर बदन से चिपक गये, सलौनी ने अपना सिर भाई की चौड़ी छाती से सटा लिया, और आँखें बंद करके चेहरे पर पड़ रही ठंडी-ठंडी बूँदों का मज़ा लेने लगी…!
भाई के शरीर की गर्मी पाकर उसके बदन में हलचल शुरू हो गयी, वो अपने भाई के स्पर्श को महसूस करके उत्तेजित होने लगी…!
सफेद स्कूल शर्ट भीगने से उसके बदन से चिपक गयी थी, जिसमें से उसकी हरे रंग की समीज़ साफ-साफ दिखाई दे रही थी, ब्रा अभी तक उसे पहनने को नही मिली थी..
गीली समीज़ में उत्तेजना के कारण उसके नन्हे-मुन्ने किस्मिस के दाने जैसे निपल कड़क होकर सामने से अपना इंप्रेशन दिखाने लगे, जिन्हें उपर से शंकर साफ देख पा रहा था…!
माँ के साथ हुए उस दिन के घटनाक्रम के बाद से अब उसके मन में भी नारी शरीर के प्रति उत्सुकता बढ़ती जा रही थी,
वो उसके नुकीले निप्प्लो को देख-देखकर उत्तेजना से भरने लगा.., इसी वजह से अंडरवेर में उसका नाग अपना फन फैलने लगा…!
उसके लंड के उभार को सलौनी ने अपनी पीठ पर महसूस किया, वो मन ही मंन खुश होने लगी, उसे पूरा विश्वास था, कि उसकी तरह उसका भाई भी उत्तेजित हो रहा है..
उसने अपने कच्चे अमरूदो की झलक अपने भाई को दिखाने का निश्चय कर लिया,
सलौनी ने थोड़ा सा अपना सिर हॅंडल की तरफ झुकाया, अपने एक हाथ की उंगलियों से अपनी शर्ट के उपर के दो बटन खोल दिए और समीज़ को थोड़ा नीचे की तरफ खींचकर खिसका दिया…!
फिर खुद ने ही झाँक कर अपने बदले हुए सीन का जायज़ा लिया, अब उसकी छोटी-छोटी चुचियों का उपरी हिस्सा दिखने लगा, ये सीन बनाकर उसने अपना सिर पीछे को फिर से अपने भाई के सीने से सटा दिया…!
जैसे ही शंकर की नज़र सलौनी के सीने पर पड़ी, दो बटन खुले होने की वजह से उसके नन्हे मुन्ने गेंदों के बीच बने छोटे से ढलान और उपर के उभारों को देखकर जिनके उपर बारिश के पानी की बूँदें मोतियों की तरह चमक रही थी…
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