RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
रास्ते में सलौनी बोली – भैया, कितने दिन हो गये, जब से ये मुई साइकल आपको मिली है, तबसे कभी आपने मुझे अपनी पीठ पर नही बिठाया…!
शंकर उसकी बात सुनकर फ़ौरन झुक कर खड़ा हो गया और बोला – अरे तो इसमें क्या ले आ हो जा सवार अपने घोड़े की पीठ पर…
सलौनी पीछे से जंप मारकर उसकी पीठ पर सवार हो गयी, और अपने भाई के बलिष्ठ कंधो को पकड़कर, अपनी दोनो टाँगें उसकी कमर के इर्द-गिर्द लपेट दी…
शंकर ने अपनी बेहन की कोमल पतली सी कलाईयों को पकड़ कर उसे अपनी पीठ पर अच्छे से बैठने के लिए उपर को सरकाया…!
सलौनी के कच्चे नीबू, जैसे ही उसकी पत्थर जैसी शख्त पीठ से रगडे, आनंद के मारे सलौनी का पूरा शरीर झन झना उठा…!
भैया मेरे बाजुओं में दर्द होने लगा है लटके-लटके, ज़रा मुझे पीछे से पकडो ना, सलौनी अपने दिमाग़ के घोड़े दौड़ाते हुए कुछ देर बाद बोली…
शंकर ने अपनी दोनो बाजू एक के उपर दूसरी रख कर उसके गोल-गोल छोटी बॉल जैसे चुतड़ों को नीचे से सहारा दिया…!
ओफ़्फूओ…भैया ! ऐसे नही, अलग अलग हाथों से मेरी टाँगों को पकडो ना…!
निर्मल मन शंकर एक छोटी सी गुड़िया की बातों में आ गया, वो तो उसे अभी भी पहले वाली छोटी सी प्यारी सी गुड़िया ही समझ रहा था,
सो उसने अपने बड़े बड़े हाथों में उसकी मुलायम मक्खन जैसी जांघों को पकड़ लिया…, सलौनी, जो अब तक अपनी दोनो टाँगों को उसके दोनो तरफ फैलाए उसके शरीर से लपेटे थी, उन्हें आपस में जोड़ने लगी…!
शंकर की उंगलियाँ उसकी छोटी सी अन्छुई मुनिया से मात्र दो अंगुल ही दूर थी, जिन्हें और नज़दीक लाने की तिकड़म वो सोचने लगी…,
शंकर अपनी मस्त मौला चाल से अपनी बेहन को पीठ पर लटकाए घर की तरफ बढ़ रहा था, इस बात से पूरी तरह अंजान की उसकी छोटी बेहन अपने दिमाग़ में क्या खिचड़ी पका रही है…!
वो हिल-हिल कर खूब कोशिश में थी, की कैसे भी उसे उसकी मंज़िल मिल जाए, लेकिन शंकर की मजबूत पकड़ ज़रा भी अपनी जगह से नही हिल पा रही थी…!
सलौनी ने अपना पूरा वजन शंकर के हाथों के उपर डाल दिया और बोली – भैया मे नीचे खिसक रही हूँ, थोड़ा उपर करो ना…!
बस इस बार उसकी तरक़ीब काम कर गयी, शंकर ने हल्का सा झटका देने के लिए एक क्षण के लिए अपने हाथों की पकड़ को ढीला किया,
और उसी क्षण का लाभ लेते हुए सलौनी ने अपनी मुनिया के दोनो तरफ के होंठों को उसके दोनो हाथों की उंगलियों से सटाते हुए अपनी जांघों को ज़ोर्से भींच लिया…!
उसका हाथ लगते ही सलौनी की मुनिया खुशी से झूम उठी, पहली बार किसी मर्द के स्पर्श को अपने उस नाज़ुक जगह पर होते ही वो आसमानों में उड़ने लगी,
शरीर के सारे तार झन-झना उठे, उसके रोंगटे खड़े हो गये, अपनी जांघों को उसके हाथों पर ज़ोर्से कसते हुए उसकी मुनिया ने अपनी लार टपका दी, जो आधी बाहर आ चुकी थी और उसका दूसरा सिरा अभी भी अंदर ही था…..!
इतने में उसका घर आ गया, चौक में पड़ी चारपाई पर घूमकर उसने उसे चारपाई पर पटक दिया…!
सलौनी अपनी आँखें बंद किए चारपाई पर पड़ी हुई थी, अपनी उसी खुमारी में, उसे होश ही नही था कि वो किस स्थिति मैं, जबकि उसकी स्कर्ट उपर उठी हुई थी, जिसमें से उसकी सफेद रंग की कच्छि साफ दिखाई दे रही थी…
शंकर को कच्छि कुछ गीली सी दिखी, उसने सलौनी से पुछा – गुड़िया तेरा पेसाब निकल गया क्या…?
सलौनी एकदम चोन्क्ते हुए बोली – नही तो..!
शंकर – तो ये तेरी कच्छि कैसे गीली हो रही है…?
सलौनी ने झटके से सिर उपर करके देखने की कोशिश की लेकिन उसे कुछ नही दिखा, फिर उसने अपना हाथ अपनी मुनिया के उपर ले गयी, तो सचमुच उसकी उंगलियाँ चिप-चिपि हो गयी…!
वो शर्मकार झट से चारपाई से खड़ी हो गयी, और बोली – हो सकता है भैया, ग़लती से निकल गया होगा, मे पेसाब करके आती हूँ, ये कहकर वो नज़र चुराकर वहाँ से भाग गयी…..!
नाली पर खड़े होकर सलौनी ने अपनी स्कर्ट को उपर किया, और कच्छि नीचे करके जैसे ही अपनी मुनिया के उपर हाथ लगाया, उसकी उंगलियाँ रस से चिप-चिपा गयी,
आअहह…कितना गाढ़ा और लस लसा था वो, एक दम चासनी की लाट की तरह खींच कर लंबा होता चला गया,
सलौनी ने अपने हाथ को नाक के पास लाकर सूँघा, उसमें से कस्तूरी की तरह सुगंध उठ रही थी, जिसे सूंघते ही वो मदहोश हो गयी, और उसके मुँह से एक कामुक सी सिसकी…फुट पड़ी…
आअहह…भैयाअ…ये कैसा जादू किया है आपके हाथों ने……..!
इन सब बातों से अंजान, रंगीली का शेर शंकर जैसे ही हवेली जाने के लिए वापस मुड़ा, उसका सामना घर में घुस रहे उसके धर्म पिता.. अरे अपने रामू भैया, जो लाला के खेतों से काम करके लौट रहे थे उनसे हो गया…!
रामू जो बमुश्किल उसके सीने तक आ रहा था बोला– अरे शंकर बेटा ! आज सूरज पश्चिम ते कैसे निकल आयो…, मेरा मतलब आज हवेली ये छोड़ यहाँ का कर रहो ये..…?
शंकर – राम राम बापू, वो सलौनी लेट हो गयी थी, उसे ही छोड़ने आया था..
तभी उसकी दादी दुलारी भी आ गयी और बोली – अरे बेटा तनिक हमाए झोर भी बैठ ले कर…!
वो कुछ देर उन लोगों के पास बैठ कर हवेली लौट लिया….!
शंकर की मर्दानी शेर जैसी चाल, उसके रंग रूप और कसरती बदन पर स्कूल में उसके बड़े क्लास की लड़कियाँ भी मक्खियों की तरह उसके आस-पास भिन-भिनाति रहती थी…!
लेकिन वो अपनी माँ का आग्याकारी पुत्र, इन सब चीज़ों से परे, उसे बस माँ जो कहेगी वही सही वाली स्थिति में था…!
ना किसी से कोई ज़्यादा लेना देना, अपनी राह जाना, अपनी राह आना….! पढ़ने और खेल कूद में हमेशा अब्बल, सो सारे टीचर्स की पहली पसंद… ऐसा था रंगीली का शंकर….!
.....................
कल्लू की दूसरी पत्नी लाजो इतने अच्छे संसकारों वाली नही थी, जो कि सुषमा की तरह संकोच बस हर तरह की बात को अपने अंदर ही दफ़न कर ले…
कल्लू की मर्दानगी की पोल तो उसके उपर पहली रात को ही खुल गयी थी…, वो समझ गयी कि बेटा पैदा करना इसके बस की बात नही है...,
पहली पत्नी से बेटी भी कैसे पैदा हो गयी ये भी बड़े अचरज की बात है…!
उसने तय कर लिया कि अगर इस घर पर राज करना है तो बेटा पैदा करना ही पड़ेगा, और कैसे पैदा करना है इस बारे में वो सोचने लगी…!
|