RE: kamukta Kaamdev ki Leela
आखरी पड़ाव :
जल्द से जल्द महेश अब अपने घर पहुंच जाता है और जैसे ही दरवाज़े की और पहुंचा तो पाया के दरवाजा तो खुला का खुला है। हैरानी से वोह आगे जाता गया और तभी एक अजीब सा माहौल दिखाई दिया। पूरा घर अंधेरे में था, लेकिन जगह जगह मुंबत्ती की रोशनी चमकमगा रही थी। "रेवती??? रिमी????" महेश यहां वहा सब को ढूंढता गया के तभी एक लड़की की साया उसे दिख जाता है। महेश बेसबर होकर आगे की और जाता है, और धीमी सी रोशनी में उसे दिख जाति है रेवती! जो कयामत से कम नहीं लग रही थी।
महेश के नज़रे उससे हट नहीं पाए जैसे ही उसके आंखो ने सामने खड़ी रेवती की नाप तोल की! एक हरी रंग की स्परेगती टॉप पहनी हुईं थी, जो केवल उसकी मस्त जांघो तक ही अाई हुई थी। होंठो पर एक कातिलाना मुस्कान लिए, वोह महेश के आगे आगे जाने लगी। महेश भी एकदम स्थिर हो गया अपने भतीजी का चाल देखकर और इससे पहले वोह कुछ भी बोल पाता, रेवती उसके होंठो पर उंगली रख देती है "शुआश! कुछ मत बोलिए ताऊजी! बस इस पल का आनंद लीजिए!"।
महेश और क्या करता भला, बस चुप चाप खड़ा रहा और रेवती उसे धकेलकर सोफे पर बिठा देती है। "लेकिन के क्या रिमी घ घर पर है???" कुछ चिटनित होकर महेश पूछने लगा, तो रेवती हस देती है "फिक्र मत करो मेरे म प्रिय ताऊजी! रिमी तो कब की निकल गई घर से, और इस समय एक आप और मुझे छोड़कर, कोई भी नहीं है घर पे!"। महेश के आंखे बड़े बड़े हो गए इस वाक्य को सुनके, और तुरन्त उसके बाद वोह हैरान होता हैं, जब रिमी एक पट्टी निकालती है।
उस पट्टी को देखकर महेश कुछ कंफ्यूज सा होने लगा, लेकिन रेवती एक चंचल मुस्कुराहट के साथ उसे देखे जा रही थी। उसे देखकर महेश भी पागल सा होने लागा, "लेकिन बेटा यह सब???? ओह!!"। इससे पहले वोह कुछ कह पता, रेवती उसके आंखो को बन्द कर देती है पट्टी से और महेश इस नए खेल का मज़ा लेने लगा "बहुत शरारती हो तुम! लगता है फिल्मे काफी देख रही हो आजकल!" आंखो में पट्टी बंधे महेश हस परा। कुछ पल तक यूहीं अंधा बने महेश वहीं बैठा रहा के रेवती दूर अंधेरे में से किसी को इशारा करती है और वोह भी एक लड़की ही थी, लेकिन पूर्ण नग्न अवस्था में। जिस्म के मामले में वोह रेवती से काफी सुडौल थी और वोह और कोई नहीं बल्कि खुद रिमी थी!
होंठो पे मुस्कान लिए रिमी धीरे धीरे रेवती के करीब जाने लगीं और अपने पिता पर पट्टी बंधे देख, वोह खिलखिला उठी। धीमे से रेवती की और देखकर एक त्थंप्सुप देने लगी और जवाब में रेवती ने भी आंख मार दी। फिर कुछ पालनतो वोह दोनों वहीं रुके रहे और इस बार रिमी आगे बढ़कर अपने पिता के शर्ट के बटनों को खोलने लगती है धीरे से, एक एक करके। इस बात से उत्तेजित होकर महेश, जिसके मन में रेवती थी बोल परा "ओह!! रेवती बेटा! यह सेड्क्शन की कला बेरखुबी जानती हो, लगता है!"। इस उत्साह से अब उसका लिंग खड़ा होने लगा, जिसका उभर रिमी को साफ उसके पैंट पे दिखाई दी, और इस बात से वोह बहुत उत्तेजित हो जाती है।
रेवती भी एक बाप बेटी के खेल को पूरी आनंद से खड़ी खड़ी देखने लगती है और अब रिमी पैंट के ज़िप को भी बहुत प्यार से खोलने लगी , जिससे महेश अब काफी ज़्यादा उत्तेजित हो रहा था। खेल का साथ देती हुई रेवती खड़ी खड़ी ही बोल परी "मज़ा आ रहा है ताऊजी!" और वोह चुपके से हस देती है, और जवाब में महेश केवल हलके हलके सिसकी ले रहा था, जिसे देख रिमी और ज़्यादा उत्तेजित हो जाती हैं और इस बार पैंट को नीचे की और खिचने में भी पूरी कामयाब हो जाती है!
सबसे मज़े की बात यह थी के महेश के मन में सारे के सारे कारनामा रेवती कर रही थी और इस बात की भनक भी नहीं था के उसकी अपनी बेटी रिमी इस में शामिल है!
खैर, कच्छे में अपने खुद की पिता के उभर को देखकर रिमी कुछ सिसकी देती हुई सांसे छोड़ने लगी, जिसका असर उभरे लिंग के और होने लगा, और महेश हुंकार मारने लगता है "ओह!! रेवती! बहुत शरारती हो तुम!! गॉड पे बैठो तो सही! तेरी यह गांड़ लाल कर दूंगा!!!" अब महेश अपने जनवरी रूप पे आने लगा और शब्दो को सुनकर रेवती से कहीं ज़्यादा रिमी उत्तेजित हो चुकी थी। अब उसकी नजर अपने बाप के उभर पर थीं और इस बार रेवती भी अपनी बहन की तरह घुटनों के बल बैठ जाती हैं। दोनों के दोनों एक ही तरह बैठे थे और एक एक हाथ कच्छे की तरह बढ़ाकर उसे नीचे की और खींचने लगा।
इस तरह महेश भी उनके सहायता करते हुए थोड़ा उपर उठ जाता है, जिससे कच्छा एकदम से नीचे अा जाता है और एक मोटा सावला लिंग एक झटके में आज़ाद होकर टना हुआ आसमान कि और देखने लगा।
उफ़! उस नग्न मोटे लिंग का दर्शन करके रेवती तो फिर से एक बार उत्तेजित हो उठी, लेकिन सबसे बेचैन और पागल सी हो रही थी रिमी! उसकी आंखे बड़ी के बड़ी रह गाई और ज़ुबान को होंठो की और फिराने लगीं। अपने बहन को देखकर रेवती भी उसे तीज करने लगी "अच्छी है ना?" धीमे से वोह बोली और बेचारी कामुक रिमी केवल मासूम बने ढोंग करती हुई हा में सर को उपर नीचे की।
इस बार दोनों के दोनों उस लिंग को जकड़कर प्यार से सहलाने लगे और महेश बेचैन हो उठा "रेवती बेटा!!!लॉलीपॉप की इच्छा फिर से हो रही है क्या???" खैर, जल्दी जल्दी निपटा दो!! कहीं रिमी या राहुल ना अजाए!!" रिमी इस बात पे चुपके से हस परी और रेवती धीरे से बोली "कुछ नहीं होगा ताऊजी! रिमी लेट आयेगी!"। इतना सुनकर महेश सुकून से अपने पीठ को पीछे की ओर बिछा देता है और दोनों लड़कियां अब बारी बारी लिंग के सुपाड़े तक हाथ फिराने लगे।
महेश और ज़्यादा बेचैन हो उठे जब रेवती सुपाड़े को अपनी मुंह में भर लेती है, जिसे देख रिमी भी बहुत उत्तेजित हुए अपनी आंखे बड़ी कर लेती है। जैसे जैसे रिमी नीचे नीचे मु किए लिंग को चूसने लगी, महेश बेसुध होने लगा और आनंद लेने लगा। फिर अपनी मुंह को हटाकर, उस लिंग को रिमी की तरफ फिरा देती है, जिसे देख रिमी उत्सुक होकर अपनी मूह आगे करती है और पूरी उत्साह में सुपाड़े को प्यार से चूम लेती है!
महेश को एक झटका सा लगा, लेकिन बार बार सोच रहा था रेवती को मन में लिए, जबकि इस बार रिमी उस लिंग को चूसे जा रही थी। लिंग को चूसते चूसते रिमी अपनी उंगलियों को महेश के होंठ पर फिराने लगीं, जिसे महेश चूसने लगता है, एक एक करके! क्योंकि उंगलियों में फ़र्क करना महेश के बस में नहीं था इस समय।
रेवती इस बार सिर्फ बाप बेटी की लीला को गौर से देखने लगीं और एक जानता के हैसियत से मज़ा लेने लगी, जबकि रिमी लिंग को इस समय केवल चूसती ही गई और जैसे ही वोह रुकी, रेवती फिर एक बार तीज करने लगी महेश को "ताऊजी! मज़ा तो रहा है ना?"। महेश रिमी की सर पर हाथ फिराने लगा और बोल परा "तुम भी कमाल करती हो! ऐसे बोल रही हों, जैसे पहली बार चूस रही हो! चलो!! लग जाओ वापस!" बेचैनी साफ नज़र अा रही थी महेश में और उसे रिमी भांप लेती है। इस बार वोह और ज़्यादा मन लगाकर चूसने काग जाती है और महेश उसकी सर को दबाए रखा, अपने और।
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वहा दूसरे और वेरोनिका की रिसोर्ट में, मा बेटे बिस्तर पर लेटे रहे और एक दूसरे को प्यार से बस चूमते गए। बार बार आशा की हाथ बेटे के छाती पर फिरती गई और राहुल भी मा के पीठ पर हाथ फेरता गया। दो जिस्म अब मानो एक आत्मा समान हो चुके थे। यूहीं धीमे रोशनी में लेटे रहे और एक दूसरे को प्यार जताते रहे।
कुछ पल चुम्बन के बाद, आशा केवल गौर से अपने बेटे की और देखने लगीं। राहुल भी नज़रों से नज़रे मिला देता है।
आशा : सच में राहुल! सपना जैसा लग रहा है वाई ह सब!
राहुल : सच में मा! (माथे को चूमकर) सच में!
आशा : अब तो वापस अपनी पुरानी ज़िन्दगी में जाने का मुझे बिल्कुल भी मन नहीं बेटा!
राहुल : तब का तब देखा जाएगा मा! फिलहाल मेरी बाहों में रहो!
मा बेटा वैसे की वैसे लेटे रहे, एक दूसरे के बाहों में। सच में एक परम सुख की अनुभव कर चुकी थी आशा अपने बेटे के साथ।
......
वहा दूसरे और, रेवती खुद को उंगली किए बार बार रिमी को महेश के लिंग पर चूसते देखी जा रही थी, और इस बार रिमी की गति काफी बड़ गई थी लिंग पर, जिससे महेश अब तेज़ तेज़ हुंकार मारने लगा। बार बार उसके हाथ अपने बेटी के सिर को जकड़े गए और इस बात का एहसास भी नहीं था। पूरे मज़े के साथ वोह अपने बेटी से लिंग को चुसाई जा रहा था और रिमी भी पिता को रिझाने में मगन थी।
पूरा का पूरा माहौल कामुक हो उठा घर पे।
रेवती और रिमी महेश को रिझाने में लग गए और महेश पागलों की तरह सिसकने लगा। इस बार बात को आगे लेजाता हुआ, रेवती अब अपनी खुद की थूक से उसके लिंग को गीली कर लेती है और रिमी की और देखकर इशारा की। "कौन में???" उत्तेजना से रिमी धीरे से बोली और रेवती ने बस सर को धीमे से हा में हिलाई। पूर्ण नग्न अवस्था में रिमी बार बार अपने पिता के मोटे लिंग को ही देखी जा रही थी और होंठ पर ज़ुबान फिरायाई पागलों की तरह। रेवती चुपके से अपनी बहन कि होंठ चूम लेती है "यह मेरी नहीं! तेरी हक ज़्यादा है!!"
अपनी बहन कि इशारा समझ जाती है रेवती और पूरी उत्तेना से महेश के उपर चड जाती है और बहुत ही हौले से अपनी योनि दुआर को लिंग में घुसने लगी। पहले भइया और अब पिता! उफ़, रिमी की तो मानो वासना की कोई अंत ही नहीं था। खैर, लिंग और योनि के मिलन होते ही महेश पहल हो उठा और रिमी को अपने बाहों में कस लेता है "ओह मेरी बच्ची!!!!" मन में अभी भी रेवती ही थी और वास्तव में अपने ही बेटी के स्तन को अब दबाता गया, जिससे रिमी भी उसके गले को पकड़कर जकड़ लेती है।
अब चुदाई का खेल आखिरकार चालू हो ही जाता है और रिमी अपने ही पिता के लिंग पर उछलने लगी, जिससे महेश अब बार बार अपने बेटी की गांड़ पर थप्पड़ों का बौछार करने लगा। गांड़ पर परे मीठी मीठी आवाज़ पूरी कमरे को और कामुक बना रही थी और रेवती अपने आप को उंगली किए यह सब देखे जा रही थी। महेश बार बार अपने मुंह को रिमी की स्तन से चिपकाए रखा और निप्पलों को बारी बारी चूसता गया, जिसे रिमी बड़ी मज़े से कुबूल कर रही थी। यहां पे, एक बात तो तैर थी के रिमी और रेवती, दोनों समझ चुकी थी के महेश को काफी दिनों से खाना परोसा नहीं गया था, इसलिए आज हाथ पर थाली लगते ही, वोह टूट परा!
खैर, समय और कामुक होता गया पूरे माहौल मे और रेवती यह लाइव शो देखती गई बाप बेटी के बीच में! बार बार महेश गांड़ को सहलाता गया और उतनी ही बार रिमी भी मज़े से उछलती गई लिंग पर। दो जिस्म एक रूह बन रहे थे धीरे धीरे और महेश बार बार अब पसीने से लपथ बेटी की पीठ को जकड़ रहा था। उत्साहित होकर रिमी भी महेश के गले में हाथ डाले, उसे आगे की और ले आया और अपने होंठ को उसके होठ पर रख दिए। वासना में अंधा महेश भतीजी और बेटी के लाली में फ़र्क नहीं कर पाया और बेतहाशा होंठ को चूमता गया।
बाप बेटी, दोनों के दोनों अपने वासना में रेंग गए पूरी तरह से और लिंग और योनि का मिलन होता गया। पसीने में नहाया हुआ दो दो जिस्म अब आपस मै रगड़ने लगे और चुदाई का खेल संगीन होता गया। *थूप थाप* की आवाजे बार बार आने लगी और मज़े से रिमी लिंग पर उछलती गई। रेवती भी मज़े से यह सब कुछ देखती गई और वोह भी। महेश बार बार अपने बेटी को थामे उसे पेलता गया और रिमी भी अपने पिता की साथ देती गई।
ऐसे में, रेवती को एक शरारत सूझी और वोह रिमी के कान में कुछ बोलने लगती है, जिसे सुनकर रिमी पूरी हा में हा मिलती हुई, कुछ ऐसी करती है जिसे महेश ने कल्पना भी नही की थी!
चुदाई की दौरान, रिमी एक हाथ छाती पे रखे दूसरे हाथ से महेश के पट्टी को उतार देती है और बस! महेश के आत्मा कांप उठी और वोह हैरानी से अपने पार्टनर को देखता गया "रीमी???????? व्हाट द फ्र....."। लेकिन प्यासी रिमी को कौन समझाए! वोह तुरंत ही अपनी होंठ को अपने पिता से जोड़ देती है, जिससे महेश अब वापस अपने पार्टी पे अा जाता है। सच बात तो यह है के, चुदाई के इस पड़ाव पर महेश का मन इतना बेकाबू हो गया था, के गोद में एक बेहद हसीन लड़की को लेकर कोई क्या कर सकता है भला! और कहीं ना कहीं रिमी को अपने गोद में पाकर महेश खुद पे काबू ना रख सका और ताबड़तोड़ चुदाई करने लगा।
"आह डैड!!!! ओह!!" रिमी अब खुले आम उछल रही थी और चिल्ला रही थी, और दूसरे और महेश भी अपने बेटी को मन और तन से पेलता गया। रेवती बेचारी और क्या करती, बस चुप चाप लीला को देखती गई। महेश शर्म के मारे अपने बेटी से नज़रे नहीं मिला पा रहा था, लेकिन चुदाई बरकरार थी! और दूसरे और रेवती भी पागलों की तरह उछल रही थी अपने पिता के गोदी पर। ना समय का परवाह और ना ही अपने हाल का कोई होश, बस कामलीला में मगन थी!
चुदाई के दौरान बाप बेटी में वार्तालाब थोड़ी बहुत हुई, जिसे रेवती मज़े से सुन रही थी।
महेश : (रिमी की स्तन को दबाते) उफ्फ!! तू सच में बहुत कामिनी निकली रिमी!!! तुझे तो में साजा देके ही रहूंगा!!
रिमी : (उछलती हुई) ओह!!!!! डैड! तो करो ना!!!! रोका किसने उफ़!!! ओह!!!! मारो मुझे! थप्पड पे थप्पड़ दो!!! में बहुत बुरी हूं!! (उछलकर लिंग पर, एक मासूम रुअसी मु बनाती हुई)
महेश : बिल्कुल!!! (फिर से गांड़ पर थप्पड़ देता हुआ) तेरी यह मोटे मोटे दो मटके को भी फोरुंगा आज!!! चल नीचे!!! अभी!!
बाप की आवाज़ सुनते ही रिमी कुछ सेहम सी जाति है और महेश अब अपने शर्ट भी उतारकर फेंक देता है, फिर रेवती को भी आदेश देता है नग्न होने के लिए। अब कुछ प देर बाद, माहौल कुछ इस तरह हो गया था के महेश और दोनों लड़कियां पूर्ण नग्न थे और दो दो जवान जिस्म का सामना करता हुआ महेश एकदम से हैवान हो उठा। "झुक जाओ तुम दोनों!!! अभी!" आवाज़ में एक तेज़ और सकत भाव था, जिसे भांप्ती हुई रेवती और रिमी, दोनों डर जाते है, लेकिन उत्साहित होती हुई, दिनों के दोनों झुक जाते है, अपने मुंह को महेश की और लिए, लेकिन महेश घुससे में नज़र आया।
महेश : अरे कमिनियो!!! उल्टा फिर जाओ!!!!
रेवती और रिमी समझ गए थे के क्या इरादा है, और अपने अपने थूक घटक कर विपरित दिशा में मुड़ जाते है, जिससे उनकी मदमस्त गांड़ अब दर्शन देने लगी महेश को। "तुम दोनों को शौक है ना सताने की!!! अब देखो क्या हाल होती है तुम दोनों की!!"। इतना कहना था के महेश एक पास पे रखे लोशन को हाथ में मलकर अपने दो दो उंगलियां, दोनों के गांड़ के छेद में देने लगा। छेद में उंगली घुसते ही, दोनों लड़कियां सिसक उठे और एक दूसरे को देखने लगे। महेश लोशन को फेंक देता है और सुपाड़े को प्यार से एक एक करके दोनों छेद पर हल्का हल्का मसाज करने लगा।
दोनों लड़कियां सास थामे घोड़ियों के पोज में झुके ही थे, के तभी महेश अपना सबसे पहला वार रेवती पर करता है, सुपाड़े को सीधा गांड़ में घुसाकर, जिससे रेवती आंख मूंदे एक लंबी सिसकी देने लगी "ओह! धीरे से करना ताऊजी!"। "चुप हो जा!!! उकसाने में तो तू काफी महिर है!!! अब भुगत!" कहके महेश बिना किसी संकोच के अपने लौड़े को और घुसा देता है रेवती की पीछे! नतीजा यह हुई के रेवती और सिसक उठी और महेश इस उत्साह में उसकी गांड़ मारना शुरू कर देता है। रिमी, जो पहली बार शायद मरवाने जा रही थीं, अचानक सहम गई, जब लोशन वाला उंगली उसकी छेद में भी जाने लगी।
बारी बरी महेश दिनों का गांड़ मारता गया और दोनों के दोनों अपने सिसकियों को रोक नहीं पाई! पूरा का पूरा माहौल मानो वासना से भर गया था और कुछ ही पलों के बाद महेश अपने मलाई को बारी बारी, दोनों के पसीने से भरी गांड़ के चमरी पर उभेल देता है। गरागर्म पदार्थ को अपने अपने तुआचा पर मेहसूस करके, दोनों रिमी और रेवती एक लंबी सिसकी देते हुए वहीं जमीन पर ही लेट जाते है और महेश भी वही उनके बीच सो जाते है। तीनों में से किसी को भी राहुल और आशा का खयाल ना रहा! तीन तीन जिस्म पसीने से लथपत होके, एक दूसरे को सेहलाए, वहीं के वहीं सो गए।
वहा वेरोनिका के रिसोर्ट में, अपने पति के कारनामों से अनजान, सुकून की नींद ले रही थी आशा अपने बेटे के बाहों में सर को थामे।
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अगले दिन, सब कुछ नॉरमल सा होने लगा। विस्तार से अगर बताया जाए तो, आशा और राहुल दोनों, वेरोनिका के साथ लंच कर लेते है और वाहा महेश, रिमी और रवेती अपने और घर के हुलिया भी ठीक कर लेते है। महेश के रजामंदी से आशा और राहुल एक और रात बिताते है रिसोर्ट में, और वहा महेश भी दिनों लड़कियों के साथ मज़े उड़ाता गया। खैर, तीसरे दिन, महेश का प्रोजेक्ट ख़तम हो जाता है और अब वापसी का समय आ चुका था।
गाड़ी में बैठे बैठे, सब के चेहरे पर एक मुस्कान थे, गोआ टूरिज्म का नहीं, बल्कि जिस्म की सुख का खुशी था वोह!
ऐसे ही अब तीन महिने और बीत जाते है। मा बेटा, दादी पोता और बाप बेटी और भतीजी के बीच रास लीला चलता ही गया और घर घर नहीं, बल्कि जन्नत बन चुका था। ऐसे में अब राहुल और मीनल, दिनों पास आउट हो जाते है और शादी का तारिक भी नज़दीक आने लगा। राहुल के साथ मीनल एक रिश्ते में बंदने के बाद काफी खुश थी और राहुल भी! यशोधा देवी अपनी पोते के वधू को आशीर्वाद देके, उसे गले मिल जाती है और प्यार से बोली "हमारे परिवार में तेरी स्वागत है बेटी!" इतना कहके वोह राहुल को आंख मारी, जिससे राहुल भी अपने हसी रोके रखा।
दोनों परिवार इस रिश्ते से बहुत खुश थे।
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आखिरकार वोह शुभ घरी आता है, जिसके लिए राहुल से कहीं ज़्यादा बेचैन मीनल हो रही थी। उनकी सुहागरात! राहुल कमरे में आते ही अपने पत्नी को घूंघट में ओढ़े पाया और प्यार से बिस्तर पर बैठे, घूंघट को खोल देता है, जिससे मीनल की प्यारी मुखरे की दर्शन वोह कर लेता है।
मीनल : सच में! आखिर वोह दिन अा ही गया राहुल! (शर्माकर) मुझे तो उत्तेजना और डर दोनों मेहसूस हो रही है!!! (होंठ दबाकर) पहली बार जो है!
राहुल : जनता हूं! मेरा भी (खुद इतना बड़ा झूठ बोलकर हसने लगा)
मीनल : (आश्चर्य से) हस क्यों रहे हो???
राहुल हस्ते हुए रुक गया और खुद को संभाले, प्यार से मीनल की और देखने लगा "छोरों! फिर किसी दिन बताऊंगा!" इतना कहना था के वोह अपने होंठ मीनल से मिला देता है और मीनल भी उसका साथ देने लगी। बत्ती बूझ जाता है और एक नए संगसर का आरंभ!
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लेखक से कुछ चन अल्फाज़ :
दोस्तो! सबसे पहले तो में उस प्लेटफार्म का शुक्र गुज़ार हूं!
कामुक कहानी लिखने में एक अलग ही मज़ा है और मुझे इस कहानी को रचित करने में काफी आनंद मिला। उम्मीद करता हूं आपको की भी आनंद मिला होगा!
जल्द लौटूंगा एक नए कहानी लेके, तब तक अंकुर कुमार का अलविदा और कोरोना में अपने अपने खयाल रखिए!
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