11-12-2023, 06:20 AM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 61 B
इधर सेनापति की खोटी नियत, उधर पारस में ख़ुशामदीद बहना
दोपहर का समय हो गया था और पारस की ओर तेजी से जा रहे थे बलदेव देवरानी श्याम और बद्री के साथ अपने अश्वो पर ।
श्याम: बद्री यार मुझे भूख सताए जा रही है। ये पारस कब आएगा?
बद्री: धीरज रखो हम पहुँचने ही वाले हैं।
तभी बलदेव को दूर एक बाज़ार नज़र आता है।
बलदेव: माँ देखो वहाँ बस्ती है और बाज़ार भी है ।
ये सुन कर देवरानी की खुशी का ठिकाना नहीं था।
देवरानी: हाँ बलदेव हम पारस पहुच गए हैं।
श्याम: हाँ! मौसी हम पहुच गए।
बलदेव श्याम और बद्री अपने घोड़े को तेजी से बाज़ार की तरफ बढ़ाते है और वहाँ पर अपने घोड़े रोक देते हैं ।
श्याम: कितना सुंदर बाज़ार है।
सब घोड़े से उतरते हैं। देवरानी उतर कर अपने वस्त्र ठीक करती है। बलदेव देखता है देवरानी अपनी गांड को सहलते हुए अपने वस्त्र ठीक कर रही थी । बाज़ार में बहुत शोर था।
पास में एक बूढ़ा व्यक्ति कुछ बेच रहा था । बलदेव उसके पास जाता है।
ग्राहक: ये अंजीर कितने सिक्के के दिए ।
दुकानदार: 10 सिक्के के।
बलदेव अंजीर ले कर सिक्के देता है और बलदेव दुकानदार से पूछता है ।
"श्रीमान ये कौन-सा बाज़ार है?"
"लगता है मुसाफिर हो । तुम पारस में हो बच्चे!"
तभी वहा पर श्याम बद्री तथा देवरानी भी आजाते हैं और सब ये सुन कर खुश हो जाते हैं।
बद्री: श्रीमान हमें महल जाना है।
दुकंदर: बेटा यहाँ बहुत महल है।
देवरानी: हमे सुल्तान मीर वाहिद के महल जाना है।
ये सुन कर दुकानदार और आसपास खड़े ग्राहक डर के देवरानी को देखने लगते हैं।
बलदेव: या फिर आप के महाराज देवराज के महल ।
ग्राहक: लगता है आप लोग सुल्तान के करीबी हो। वैसे सुल्तान का महल, जहाँ वह रहते हैं यहाँ से जुनूब में है और महाराज देवराज का महल सोमल में है ।
देवरानी: नहीं आप हमें सुल्तान के यहाँ जाने का रास्ता बताएँ।
बलदेव: आप कहें हमे सुल्तान के महल जाने के लिए कौन-सी दिशा में जाना है।
दुकन्दर: यहाँ से सीधा चले जाओ।
बलदेव दिशा समझ कर अपने घोड़े पर बैठता है और अपनी माँ को भी सहारा दे कर बैठाता है।
बद्री और श्याम भी अपने-अपने घोड़ों पर बैठ जाते हैं । फिर उस दिशा में घोड़े दौड़ने लगते हैं।
कुछ देर भगाने के बाद गाँव और घर दिखाई देने लगते हैऔर हर तरफ सेना दिखने लगती है । तभी सामने से दो घुड़सावर आकर उन्हें रोकते हैं ।
"ए तुम लोग कौन हो? और महल की ओर जाने की वजह क्या है?"
बलदेव समझ जाता है कि ये पारस के सुरक्षा कर्मी है।
देवरानी: मैं देवरानी हूँ! सुल्तान की खास मित्र की देवराज की बहन!
सैनिक: माफ़ करना मोहतरमा, आप सबका ख़ुश आमदीद!
सैनिक चिल्ला कर-"ए लोगों रास्ता सुरक्षित करो। हिंद से हमारे मेहमान आये हैं।"
बलदेव देवरानी आगे बढ़ते है और देखते हैं सामने बहुत बड़ा महल दिखता है।
देवरानी: कितना विशाल और सुंदर महल है।
श्याम: ओह क्या चमत्कारी महल है।
बद्री: अधभुत!
बलदेवःअति सुन्दर!
सब अपने घोड़े को धीरे-धीरे ले जा रहे थे या । जैसे-जैसे घोड़े महल के करीब जा रहा थे वह चारो महल की ख़ूबसूरती में डूब जाते हैं।
महल के रास्ते में दोनों तरफ से कतार में खड़े सैनिक थे। बलदेव धीरे-धीरे घोड़ा आगे बढ़ रहा था। उसके पीछे श्याम या उसके पीछे बद्री था ।
सामने दो सैनिक आकर खड़े हो जाते हैं।
"बहोशियार हिन्द के महाराजा राजपाल और महारानी देवरानी महल में तशरीफ़ ला रहे हैं।"
बद्री देखता है सामने से राजसी पोषक पहने एक बूढ़ा पर हट्टा कट्टा व्यक्ति कुछ सैनिकों के साथ आ रहा था।
"खैरमकदम मेरी बहन देवरानी आओ!"
देवरानी देखती है ये तो मेरा भाई नहीं है फिर कौन है?
बलदेव सैनिक के कहे अनुसार घोड़े को एक तरफ ले जाता है, फिर देवरानी को पहले उतारता है फिर खुद उतारता है।
सैनिक: आइए आपका स्वागत करने खुद सुल्तान करने आए हैं।
देवरानी: (मन में:-ओह! तो ये है सुल्तान मीर वाहिद!)
देवरानी अपने हाथ जोड़ कर प्रणाम करती है और फिर बारी-बारी सब प्रणाम करते है।
सुलतान: आइए! आप सबको महल ढूँढने में कोई परेशानी तो पेश नहीं आई!
बलदेव देवरानी के साथ चलता हैं ।
"नहीं सुल्तान !"
सब चल कर महल के द्वार पर आते हैं।
सुलतान: सुनो जा कर सब से कह दो के हमारे मेहमान आ गए हैं ।
सैनिक: जी सुल्तान !
सुल्तान के बाए बलदेव और गाते हाथ देवरानी चल रही थी।
उनके पीछे श्यामऔर बद्री चल रहे थे। इन चारो को ले कर सुल्तान सभा में पहुँच जाते जहाँ पर दोनों तरफ से बड़े कुर्सी सोफ़े पर मंत्री बैठे थे सुल्तान को आता देख पूरी सभा में मौजूद सभी खड़े हो जाते है।
और दोनों तरफ से लोग बलदेव देवरानी के ऊपर फुलो की बारिश कर देते हैं ।
"ख़ुशामदीद ख़ुशामदीद!"
श्याम और बद्री अपना स्वागत देख गदगद हो जाते हैं।
सुल्तान जा कर अपने आसन पर बैठ जाते हैं।
सुलतान: आप यहाँ बैठिए राजा राजपाल जी! और देवरानी बहन आप यहाँ पर बैठें।
बद्री: (मन में:-ये बूढ़ा बलदेव को राजपाल बुला रहा है।)
जगह देख कर बद्री और श्याम भी बैठ जाते हैं ।
बलदेव: सुल्तान वह मैं वह नहीं...।
सुलतान: अरे हमारी आँखे आप दोनों को घोड़े पर बैठे देख ही समझ गई थी के आप ही देवराज के जीजा राजपाल और ये हमारी बहना देवरानी है।
ये सुन कर देवरानी शर्मा जाती है और बलदेव को भी अंदर से अच्छा लगता है। पर लोगों को दिखाने के लिए झूठा नाटक करता है।
बलदेव: नहीं सुलतान!
देवरानी: आप से भूल हुई ये मेरा बेटा है!
सुल्तान को जैसा एक झटका लगता है।
"मुआफ़ करना बहना!"
देवरानी: अरे कोई बात नहीं सुल्तान आप पहली बार ही तो मिले हैं। वैसे मेरे पति कोई कारणवश मेरे साथ नहीं आ सके।
देवरानी: (मन में:-जब मेरा असली पति यहीं है तो लगेंगे ही हम पति पत्नी ।)
और उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है जिसे बलदेव देख लेता है तो वह भी मुस्कुराता है।
बलदेव: (मन में;-माँ बस मेरी पत्नी कहलाकर इतना खुश है, सच में बना लूंगा तो कितनी खुश होगी।)
देवरानी: सुल्तान...भैया देवराज कहा रह गए?
सुल्तान: देवराज शहजादे शमशेरा के साथ शिकार पर गए हैं हमने खबर भेजवा दी है।
सुलतान: दोस्तो ये हिंद से आए हमारे मेहमान है मैं चाहता हूँ कि इनको पारस में किसी भी चीज़ की तकलीफ़ न हो ।
सुल्तान: बहन देवरानी! आप सब अंदर जाएँ! देवराज को आने में समय लग सकता है।
सुलतान: सुनो!
सैनिक: जी जहाँ पनाह!
सुल्तान: सबके रहने और खाने का बंदोबस्त करो। इनसब की मल्लिका जहाँ से मुलाकात करवाओ!
सैनिक चारो को अंदर ले जाते हैं।
बद्री श्याम के कान में।
"ये क्या नौटंकी है? तुम जाओ उन दोनों के साथ, मैं यहीं रुक रहा हूँ।"
"हाँ यार बद्री मुझे भी प्यास लगी है।"
बद्री: सुनो हमें पानी पीना है।
एक सैनिक बद्री और श्याम को पानी पिलाने ले जाता है, बाकी सैनिक बलदेव और देवरानी के साथ चल रहे थे।
मल्लिका जहाँ के कक्ष के पास रुक कर सैनिक बोलता है ।
सैनिक: गुस्ताख़ी मुआफ़ हो! मल्लिका जहाँ! हमारे मेहमान आपसे मिलने आये हैं।
मल्लिका जहाँ: इजाज़त है।
बलदेव और देवरानी सैनिकों के इशारे पर अंदर आते हैं। सैनिक वही रुक जाते हैं । एक बड़ा-सा कक्ष था जिसमें जड़े हीरे सोने जवाहरात चमक रहे थे । कक्ष के बीचो बीच में पलंग था जिसपर मखमली बिस्तर लगा हुआ था । सामने नकाब में खड़ी थी मल्लिका जहाँ।
बलदेव और देवरानी दोनों हाथ जोड़ कर मलिका का इस्तकबाल करते हैं ।
"प्रणाम मल्लिका जहाँ!"
मल्लिका जहाँ भी उनका स्वागत करती है ।
"सलाम आप दोनों को!"
मल्लिकाजहाँ: तुम दोनों की जोड़ी बेहद खूबसूरत है।
देवरानी: मुआफ़ कीजिए! पर क्या आप सुल्तान मीर वाहिद की मल्लिका है?
मल्लिकाजहाँ: जी हा मैं उनकी बीवी हूर-ए-जहाँ हू। प्यार से मुझे हुरिया भी कहते हैं।
देवरानी: आप भी हम दोनों को गलत समझ रही हैं। मल्लिका जी!
मल्लिकाजहाँ: मतलब?
देवरानी: मतलब ये मेरे पति नहीं है।
मल्लिकाजहाँ: यानी तुम कह रही हो कि ये आप शौहर नहीं है तो फिर कौन है?
देवरानी: ये मेरा बेटा है।
मल्लिकाजहाँ: तौबा तौबा! मुआफ़ करना! मेरी बहन । तुम दोनों की जोड़ी देख कोई भी धोखा खा सकता है।
देवरानी: कोई बात नहीं दीदी, तो क्या आप हमेशा अपने चेहरे को ढके रहती हैं?
मल्लिकाजहाँ: नहीं मेरी बहन। में सिर्फ गैर मर्द से, भले से वह रिश्तेदार ही हो उनसे पर्दा करती हूँ।
देवरानी: तो क्या, आपको देखने के लिए बलदेव को बाहर भेजना होगा?
मल्लिकाजहाँ: नहीं, नहीं, ये तुम्हारा बेटा है, तो फिर मेरे भी बेटा जैसा ही है, सिर्फ ये मेरा चेहरा देख ले, तो कोई हर्ज़ नहीं।
मल्लिकाजहाँ उर्फ हूर-ए-जहाँ हुरिया अपना नकाब अपने चेहरे से हटाती है तो देवरानी और बलदेव उसे देखते रह जाते हैं।
देवरानी: वाह! क्या सुंदरता है! आपका नाम हूर-ए-जहाँ बिलकुल सही रखा गया है । आप हूर से कम नहीं हैं ।
हुरिया: देवरानी शुक्रिया मेरी बहन! तुम भी कोई कम सुंदर नहीं ही । लगता ही नहीं के हिंद की हो।
देवरानी: दीदी! मैं पारस में ही पेदा और पली बड़ी हुई हूँ। इसीलिए आपको ऐसा लगा।
बलदेव देख रहा था कि दोनों बहुत जल्दी घुल मिल गई थी।
हुरिया: बेटा तुम क्यू चुप चाप हो?
बलदेव (मन में: बेटा तुम यहाँ से निकलो ही लो। दो औरतें के बीच में फ़सना ठीक नहीं ।)
बलदेव: मल्लिका जहाँ मैं आपको मौसी बुलाऊँ तो चलेगा ना।
हुरिया: हाँ बेटा तुम बहन देवरानी के बेटे हो इसलिए मुझे खाला (मौसी) बुला सकते हो, बड़ा शरीफ बेटा है आपकी बहन देवरानी।
देवरानी बलदेव की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोली -"बहुत नटखट है।"
बलदेव: मैं ये बद्री और श्याम को देखता हूँ, कहाँ रह गए । आप लोग बात करो।
हुरिया: आओ बैठो देवरानी खड़ी क्यों हो।
बलदेव वहा से बाहर आ जाता है और देवरानी वहाँ एक सोफे पर बैठ जाती है।
जारी रहेगी ।
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12-17-2023, 05:46 AM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 62 E
मिलन - भाई बहन, सेनापति महारानी सृष्टि का
सेनापति चोली के ऊपर से वह शुरष्टि मध्यम आकर के वक्ष को अपने हाथ से सहलाते हुए दोनों को ज़ोर से दबा लेता है।
श्रुष्टि: आआआआह! सेनापति तुम्हारी इतनी जुर्रत!
सेनापति: आह! कितने मुलायम मखमली वक्ष हैं। महारानी जी आपके!
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सेनापति झट से उसकी चोली खोलने लगता है। जिससे महारानी के दोनों वक्ष कूद कर बाहर आते हैं, जिसे देख सेनापति सोमनाथ अपने होठ पर अपनी जिभ फेरता है।
अब श्रुष्टि अपने आप को पूरा नंगा देख अपना हाथ अपने चेहरे पर रख लेती है।
सेनापति: शर्मा रही है महारानी! रानी तुम तो पूरी छमिया लग रही हो।
सेनापति आगे बढ़ कर दोनों वक्षो को हाथ में ले कर मरोड़ने लगता है। उसको दबाने लगता है और फिर निचोड़ते हुए अपना लौड़ा श्रुष्टि की बुर पर रगड़ रहा था।
शुरुष्टि: आआह नहीं!
सेनापति बारी-बारी से वक्षो को मुँह में ले कर चूसता है।
"गलप्प्प्प उम्म्ह आआआह!"
श्रुष्टि शर्म से अपने चेहरे को ढक लेती है।
सेनापति श्रुष्टि के हाथ हटा कर उसके चेहरे की तरफ अपना मुँह ले जाता है और अपने ओंठ श्रुष्टि के ओंठो की तरफ बढ़ाता है।
श्रुष्टि हाथ खोलती है और अपना हाथ से सीधे सोमनाथ की गर्दन को दबाती है।
सेनापति: क्या हुआ महारानी, आपको! अपने गुलाबी होठ चूसने दो!
श्रुष्टि: नहीं!
सेनापति: क्यू? क्या इस लोहार के ओंठ चूसने से राजपूतनी महारानी अपवित्र हो जाएगी?
शुरष्टि: तुम्हारी तो... !
राजपूतनी महारानी श्रुष्टि ज़ोर से सेनापति के गर्दन को दबाती है।
सेनापति अपना हाथ ज़ोर से शुरष्टि के वक्षो पर रगड़ता और वक्षो को दबाता है और अपना लौड़ा शुरष्टि की झाटों से भारी चूत पर रगड़ता है।
शुरष्टि हाथ से सेनापति सोमनाथ की गर्दन को छोड़ देती है और शुरष्टि की आँखे कामोतेजना से बंद हो जाती है।
सेनापति सोमनाथ: क्यों वैश्याओं जैसी हरकत कर रही हो, खुद भी भूल जाओ और मजे लो और मुझे भी मजे लेने दो।
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सेनापति अपने होठ आगे बढ़ा शुरुआत के ओंठो को अपने मुँह में भर लेता है और उन्हें चूम कर चूसने लगता है।
"गैलल्लप्प गैलप्पप्प गैलप्पप्प! गैलप्पप गैलप्प-गैलप्प उम्म्म्ह स्लरप्प!"
साथ में सेनापति नीचे से शुरष्टि की चूत पर अपना 7 इंच का लौड़ा भी रगड़ रहा था और शुरष्टि के दोनों वक्ष को सेनापति निरंतर अपने हाथ से रगड़ रहा था।
सेनापति ओंठ छोड़ कर शुरष्टि के गाल को अपने दांत से पकड़ लेता है और गाल चुसने लगता है।
"उम्हहा गलप्प!"
शुरष्टि: आअहह आह ओह्ह!
सेनापति अपना दांत शुरष्टि के गाल पर लगा देता है।
शुरष्टि: आह दांत मत लगाओ, निशान पड़ जाएगा!
सेनापति अब सृष्टि को चुमता हुआ उसकी नाभि पर आकर अपनी जीभ से चाटने लगता है।
शुरष्टि: जल्दी करो महाराज आ जायगे।
सेनापति: महारानी वह रात से पहले नहीं आने वाले थे मैंने उन्हें आज दूर की सीमा पर भेजा है और शुरष्टि: को देख आख मार देता है।
शुरुष्टि: कामिने हो तुम!
सेनापति: अब क्या करे! हमारी तो हमेशा से चाहत थी कि कभी किसी महारानी को जरूर चोदूंगा। आज तुम मिल गई तो महाराज को दूर भेजना तो बनता ही था।
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शुरुष्टि: हवसि कामिने!
सेनापति: महारानी! अब हम सेनापति बचपन से आपके राज्य को आगे बढ़ाने के लिए, अपना दिन रात एक करते हैं, युद्ध करते हैं। बदले में हमे क्या मिलता है? सूखी रोटी, सूखी चूत!
शुरष्टि: छी! क्या गंदी बात कर रहे हो?
सेनापति: आज! आपको चोद के मेरा सालो से महाराज के पीछे कुत्ते की तरह घूमना, सफल हो जाएगा।
सेनापति नाभि को चूमते हुए शुरष्टि: की टांगो के बीच जाकर उसकी टांगो को उठा देता है और उसकी झांटोदार चूत को सहलाते हुए चूत का छेद देखने लगता है और दो उंगली से चूत का दाना सहलाते हुए एक उंगली चूत में घुसा देता है।
श्रुष्टि: आआआआह!
उंगली चुत के अंदर बाहर करते हुए सेनापति शुरष्टि की चुत पर झुक कर अपने होंठ चुत पर रख चूमता है।
"उम्हहाआ! क्या प्यारी चूत है। महारानी!"
अब तेजी से उंगली अंदर बाहर करते हुए सेनापति शुरष्टि की चूत के ऊपर से बाहर चाटता है और फिर ऐसे ही चूत को चारो ओर से चाटने लगता है। अब सेनापति की उंगली पर गीला मेहसूस होता है वह अपनी उंगली से बाहर निकालता है और अपनी जीभ अंदर डाल कर अपने होठों से उसकी चूत को चूसना शुरू करता है ।
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"उम्म्म आहा सेनापति नहीं!"
शुरष्टि की चुत से बहता पानी रुकने का नाम नहीं ले रहा था और सेनापति हर बहता हुआ पानी पीने लग जाता है। अब फिर से उंगली रख चुत में घुसा देता है और चुत के दाने पर अपनई जीभ रख कर चाटने लगता है।
शुरष्टि: आआआआआआह! हाये मैं मर गई!
"उह्ह्ह आआआआआह सेनापतिइइइइइइओना आआआआह सेनापतिईईईईईईई।" महारानी अब कराह रही थी ।
सेनापती देखता है कि शुरष्टि का शरीर अब गरम है या चूत आग की भट्टी-सी गयी है। फिर वह घुटनों के बल बैठ शुरुआत का हाथ ले कर अपने लौड़े पर रख देता है।
शुरुआत एकझटके के साथ अपना हाथ पीछे खींच लेती है।
शुरष्टि अपना आख खोलती तो देखती है कि सेनापति का लौड़ा आसमान को सर उठाये खड़ा था ।
शुरष्टि: (मन में-उफ़! कितना काला और बड़ा लिंग है। ये तो महाराज से भी बड़ा है और दमदार है। हाय! मैं ये क्या सोच रही हूँ।)
सेनापति फिर से शुरष्टि का हाथ ले जा कर अपने लौड़े पर रखता है । फिर सृष्टि इस बार लौड़े को अपनी मुट्ठी में भर लेती है।
सेनापति: लगता है इतना बड़ा लौड़ा कभी नहीं देखा । डर रही हो क्या महारानी?
शुरष्टि लौड़े को हाथ में पकडे मेहसुस कर रही थी।
सेनापति: इसे मुँह में लो महारानी!
शुरुआत एक चपत लौड़े पर मारती है और लौड़ा छोड़ देती है।
सेनापति मुस्कुराते हुए "अच्छा मुझे मत लो पर थोड़ा सहलाओ तो ।"
इस बार शुरष्टि खुद अपना हाथ आगे ले जा कर सेनापति के लौड़े को पकड़ कर आगे पीछे करने लगती है।
सेनापति: ये हुई ना बात!
सेनापति का लौड़ा अब शुरष्टि के पेट पर था । वह अपने दोनों टांगो को दोनों तरफ रखे हुआ था और शुरष्टि उसके लौड़े को हाथ से मुठिया रही थी ।
सेनापति शुरष्टि दोनों वक्षो को दबाने लगता है और शुरष्टि के हाथ को अपने लौड़े से छूटा कर दोनों वक्षो को अपने हाथों से पकड़ कर अपना काला लौड़ा महारानी के वक्षो के बीच में घुसाता है और आगे पीछे ढकेलने लगता है।
शुरष्टि आख फाडे देख रही थी।
"ये क्या है सेनापति?"
"महारानी मुझे लगता है महाराज ने कभी आपको ढंग से नहीं चौदा और भोगा!"
शुरष्टि उन पलो को ही याद कर रही थी की कैसे उसे तड़पता छोड़ राजपाल दो पांच झटको में वह पानी छोड़ देता है।
ये बात सुन कर शुरष्टि शर्मा कर अपने आखे नीचे कर लेती है।
अब सेनापति अपना लौड़ा वक्षो से निकल कर शुरष्टिके ऊपर लेट जाता है और उसको अपनी बाहों में भर कर उसकी गर्दन पर और उसके होठों को चूमने लगता है । फिर बिस्तर पर पलटने लगता है, कभी शुरुआत को अपने ऊपर लेता है और कभी खुद ऊपर आता है और फिर उसे ऊपर ले उसकी गांड को मसलने लगता है।
"आह महारानी श्रुष्टि, आपकी गांड को मैंने कई बार मटकते देखा है। मैं जब से अपने पिता के साथ सेना में भरती हुआ था तब से आपको पसंद करता हूँ।"
जारी रहेगी
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12-19-2023, 04:03 AM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 63 C
अपनी जन्म भूमि
बलदेव के मुंह में तभी मिर्ची चली जाती है और चिल्लाता है।
बलदेव: आह! मिर्ची खा लि माँ पानी दो।
देवरानी पास राखे पानी के जग से पानी डाल कर पानी बलदेव को देती है।
जैसे वह झुकती है उसके आधे से ज्यादा वक्ष ब्लाउज से बाहर आने को थे ।
ये दृश्य देख हुरिया हेरान थी।
क्यूके पानी पीते हुए बलदेव भी तिरछी नजरों से अपनी माँ के बड़े दूध घूर रहा था।
हुरिया 9 मन में-ये लड़की कैसे कपडे पहनती है। जवान बेटे के सामने ऐसा पहनेगी तो वह देखेगा ही। मैं इसको समझाती हूँ।
हुरिया: खाने के बाद देवरानी मेरे कक्ष में आओ!
भोजन करने के बाद और फिर कुछ देर बातें करने के बाद देवरानी बलदेव की छोड हुरिया के पास जाती है।
"आओ बैठो देवरानी!"
हुरिया: कैसा लगा खाना! किसी चीज़ की कमी तो नहीं हुई ना।
देवरानी: धन्यवाद दीदी! ये सब के लिए! मैं शमशेरा से मिली और भाई देवराज से भी ।
हुरिया: मेरे बच्चे ने शैतानी तो नहीं की।
देवरानी: नहीं दीदी आज उसके कारण से ही मैं यहाँ हूँ।
हुरिया: हाँ शमशेरा 25 का हो गया पर अभी मुंह फट हो गया है । पर जैसी बलदेव के पास है वैसी होशमंदी नहीं है उसके पास।
देवरानी: ऐसा नहीं है दीदी वह नटखट जरूर है पर दिमाग या बुद्धि में किसी से कम नहीं है । रही बात बलदेव की तो वह बचपन से ही कड़े अनुशासन में रह रहा है।
हुरिया: वैसे कितने साल का है वो।
देवरानी: बलदेव तो सिर्फ 18 साल का है पर परिपक्व हो गया है।
हुरिया: ये तो है उसके उमर के हिसाब से करोड़ो से बहुत आगे है। देखने में तो लगता है ही नहीं 18 का। ऐसा लगता है 28...30 का होगा। वो तुमसे भी बड़ा लगता है देवरानी!
देवरानी: वो उसने व्यायाम कर के अपना शरीर बढ़ा लिया है दीदी इसलिए ऐसा लगता है वैसे आपकी उमर कम ही है।
हुरिया: मैं भी 44...45 की हूँ या तुम देवरानी?
देवरानी: मैं 35 वर्षीय हू।
हुरिया: लगती तो हो कम उमर की पर इतनी कम उमर में 18 साल का बेटा।
देवरानी: ये बलदेव तो मेरा 18 लगते ही पैदा हो गया था । दीदी मेरा विवाह जल्दी करवा दिया गया था ।
हुरिया: शमशेरा तो तब पैदा हुआ जब मैं 20 की थी वैसे एक बात पूछनी थी अगर बुरा मत मानो !
देवरानी: आप बड़ी बहन हो। बहन भी कहती हो या पूछती भी हो।
हुरिया: तुम अपने ब्लाउज में कुछ पहनती हो की नहीं?
देवरानी: नहीं दीदी अंतर्वस्त्र ब्लाउज के साथ पहनना मुश्किल होता है। हमारे यहाँ उसको नहीं पहनते।
हुरिया: ब्रेज़ियर पेहना करो ।
देवरानी: लेकिन आप ऐसा क्यू पूछ रही हो?
हुरिया: बुरा मत मानना पर जब तुम अपने बेटे को खाना खिला रही थी तो तुम्हारा ऊपरी हिस्सा दिख रहा था। जवान बेटे के सामने ऐसे हाल में रहना ठीक नहीं है।
देवरानी: हम्म्म!
हुरिया: और इससे घर की बरकत ख़तम होती है। इसलिए जितना हो सके अपने आप को ढक कर रखो!
देवरानी: दीदी मैं भी पारसी हूँ, घर पर किसी अंजन के सामने अपना घूंघट तक नहीं उठाती ।
हुरिया: दूसरो के सामने जैसे घूंघट करती हो वैसा घूंघट मत करो। पर कम से कम अपने बदन को छुपा के रखो । वैसे ये हो सकता है कि कभी-कभी गलती हो जाती है।
देवरानी: खैर मैं अब से ध्यान दूंगी दीदी! वैसे ये ब्रेज़ियर क्या होता है?
हुरिया: तुम्हें तो पता ही नहीं है । चलो मेरे साथ आज मैं तुम्हे देती हूँ।
हुरिया अपना अलमीरा खोल कर अपने कपड़े हटाने लगती है और कुछ 6 7 जोड़ी ब्रेज़ियर निकाल कर देवरानी को देती है ।
"ये लो देवरानी आज से तुम इन्हे रख लो।"
देवरानी: पर दीदी!
हुरिया: रख लो! ये बहुत कीमती है। हम जब फ्रांस गए थे तो हमने लिए थे । इन्हे मैंने एक बार भी नहीं पेहना है और इसमें जंघिया भी है।
देवरानी: अब पता नहीं ये कैसा होता है, हम तो बस एक वस्त्र का पट्टी बना कर पहन लेते हैं, अपने वक्ष को आकार में रखने के लिए.
हुरिया: ये तुम पहनो के देखो इसमें तुम और सुंदर लगोगी । ये कुछ दिनो पहले ही ब्रिटेन की महारानी ने पहनना शुरू किये है । तो कुछ दर्जी अब सिल कर बड़े भुगतान पर फ्रांस में बेचते है। बहुत कम लोग इनके बारे में जानते हैं।
देवरानी: मैं भी पहली बार देख रही हूँ।
हुरिया: तो चलो मैं तुम्हारे कमरे तक छोड़ दूं!
देवरानी हुरिया का दिया हुआ सामान एक कपड़े से ढक कर उसके साथ जाने लगती है।
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हुरिया: बड़ी शर्मीली हो!
देवरानी: हेहे!
तभी सामने से देवराज के साथ बद्री या श्याम आ जाते हैं।
देवराज: बहन देवरानी तुम मल्लिका जहाँ के बगल वाले कक्ष में रहो और बलदेव बद्री तथा श्याम मेरे बगल में अतिथि घर में रुक जायेंगे।
देवरानी: पर भैया तीन लोग एक कमरे में, बलदेव को मेरे साथ सोने दो ना भैया!
हुरियाःपर देवरानी!
देवराज: ये क्या कह रही हो बहना बलदेव अब बच्चा नहीं रहा, जो अब भी तुम्हारे पल्लू में बंधा रहे।
देवरानी: (मन में-वह जवान हो गया है भैया इसलिए तो कह रही हूँ की मेरे साथ सोए और कहीं और जा कर अपना जवानी व्यर्थ नहीं करे।
बद्री: (मन में-सोने दो मामा दोनों चोदा चोदी खेलेंगे।)
बलदेव: मामा! बात ये है ना के माँ आज कल डर जाती है रात में, इसलिए कुछ दिनों से मैं उनके पास सो रहा हूँ।
ये सुन कर श्याम बलदेव को आश्चर्य से देख रहा था।
देवरानी: हाँ माँ या नई जगह है तो रात में पक्का डरूंगी।
देवराज: ठीक है ठीक है तो फिर सो जाओ बलदेव के साथ।
बद्री: (मन में-क्या भयानक युग है भाई खुद कह रहा है, अपनी बहन से, जाओ चुद आओ अपने बेटे से!)
हुरिया: आप सब आराम करो मैं चलती हूँ।
देवरानी: लंबी यात्रा से मैं भी थक गई हूँ ।
fisted hand sign smileys
देवरानी भी हुरिया के पीछे जाने लगती है । उसके साथ बलदेव भी मुड़ता है
देवराज: बलदेव तुम कहा जा रहे हो?
बलदेव: मैं भी थक गया हूँ माँ के साथ जा कर सो जाता हूँ।
ये सुन देवरानी अंदर से लज्जा जाती है और मुस्कुरा देती है।
देवरानी (मन में: "बहुत जल्दी है मेरे सैया राजा को मेरे साथ सोने की।")
देवराज: तुम रुको बलदेव हम तुम्हें बद्री और श्याम के साथ महल घुमाते हैं।
बलदेव का चेहरा उतर जाता है।
जिसे देख देवरानी मुस्कुरा देती है और मन में कहती है । "बदमाश! "
देवरानी जाते हुए-"बेटा जाओ अपने मामा के साथ तब तक मैं बिस्तर पर रहूंगी ।तुम आओगे फिर सोएंगे! ।"
बलदेव मतलब समझ कर मुस्कुराता है। बलदेव ख़ुशी-ख़ुशी अपने मामा के साथ जाता है और कुछ देर घुमने के बाद अपने कक्ष में जहाँ उसे उसकी माँ के साथ रहना था वहा आता है।
"माँ किधर हो?" "मेरी जान किधर हो?"
"माँ"
कमरे में घुस कर बलदेव आवाज लगा रहा था तब भी वह देखता है सँघड़ से कुछ आवाज आती है और दरवाजा खुला हुआ था । वह अंदर जैसा जाता है अंदर का दृश्य देख उसके आखे वही जम जाती है और उसकी सांसें लगभग बंद हो जाती है।
scissors
देवरानी एक झीने-सी कपडे से अपने बड़े वक्ष को छुपाने की कोशिश कर रही थी और जैसे ही बलदेव पर नजर पड़ती है । वह अपनी नजर नीचे कर कहती है ।
"बलदेव! में नहा रही हूँ तुम जाओ ना यहाँ से"
बलदेव एक टक देवरानी के बड़े-बड़े पपीतो जैसे वक्षो को घूर रहा था । उसके वक्ष पर घुंडी भी साफ नजर आ रही थी जो किसी के सिक्के के गोलाई जैसी थी।
बलदेव देख कर अपना होठ दबाता है।
देवरानी: जाओ ना बलदेव मुझे शर्म आ रही है
बलदेव: क्यू अपने होने वाली पति से क्यू शर्मा रही हो!
देवरानी अब और शर्मा जाती है
बलदेव: क्या ख़ूबसूरत वक्ष है मेरी रानी मेरी पत्नी के!
देवरानी: तुम्हें मेरी कसम मेरे सैंया जाओ!
बलदेव हड़बड़ी में बाहर निकलता है या फिर कक्ष का दरवाजा बंद कर देता है...
जारी रहेगी
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